जैन तर्कशास्त्र में अनुमान - विचार ऐतिहासिक एवं समीक्षात्मक अध्ययन | Jain Tark Shastra Men Anuman - Vichar Etihasik Evm Samikshatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३० : खैस शकहास्त्रमें भनुमान-विचार
उपसंहारमें जैन अनुमानकी कतिपय उपलब्धियोंका निर्देश है जो जैन ताकि-
कोके स्वतन्त्र चिन्तनका फल कही जा सकती हैं ।
ऊपर कहा गया है कि यह शोघ-प्रबन्ध माननीय डा. नन््दकिशोर देवराज
एम. ए., डी. फिल., डी. लिट्., अध्यक्ष दर्शन-विभाग तथा निर्देशक उच्चानु-
शीरम दर्शान-संस्थान और डीन आर्टस फैकल्टी काशी हिन्दु विष्वविद्यालयके मिर्दे-
दानमें तैयार किया। डा. देवराजसे समय-समयपर बहुमूल्य निर्देशत और
मार्यदर्दान प्राप्त हुआ । सम्प्रति उन्होंने प्रावकथन भी लिख देनेकी कृपा फी है ।
इसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ ।
सुहृद्दर श. नेमिचन्दर शास्त्री एम. ए ( संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी ), पी-एच.
डो., डी. लिट्., ज्योतिषाचार्य, अध्यक्ष प्राकृत-संस्कृत विभाग जैन कालेज आराको
नहीं भूल सकता, जिन्होंने निरन्तर प्रेरणा, परामर्श और प्रवर्सन तो किया ही है
अपना पुरोवाक् भी लिखा है । वे मुझे भग्नज मानते है, पर विशिष्ट और बहुमुखी
मेधाकी अपेक्षा मैं उन्हें ज्ञानाग्रजके रूपमें देखता व मानता हूँ । अतएवं मैं उन्हे
धन्यवाद दूं तो उचित ही है ।
जिन साहित्य-तपस्वी श्रद्धेय आ० जुगलकिशोर मुख्तारने सत्तर वर्ष तक सिर-
न्तर साहित्य-साधना और समाज-सेवा की तथा साधना और सेवाका कभी प्रतिदान
या पुरस्कार नहीं चाहा, आज उनका अभाव अखर रहा है । आशा है इस प्रबन्ध-
कृतिसे, जिसे मेने उनके €२ वें जन्मदिनपर उन्हें एक मुद्रित फर्मा द्वारा समपंण
किया था और जिसका प्रकाशन उनकी सदिच्छानुसार उन्हीके ट्रस्टसे हो रहा है,
उनकी उस सदिष्छाकी अवश्य पूर्णता होगी । मेरा उन्हे परोक्ष नमन है ।
स्याद्राद महाविद्यालय वाराणीके अकलंक सरस्वतीभवनसे शतश, ग्रन्योका
उपयोग किया और जिन्हे अधिक काल तक अपने पास रखा । काशी हिन्दू विश्व-
विद्यालयके गायकबाड़ ग्रन्धागार, जैन सिद्धान्त भवन आरा और पाश्व॑ताथ जैन
विद्याश्षम वाराणसीसे भी कुछ ग्रन्य प्राप्त हुए। हमारे कालेजके सहयोगी प्राघ्या-
पक मित्रवर डा गजानन मुशछगावकरने मोमासादर्शनके और श्री मूलक्षंकर
व्यासने वेदान्तके दुम ग्रन्थ देकर सहायता की । अनेक भ्रन्थकारों और प्रन्य-
सम्पादकोंके ग्रन्थोंसे उद्धरण लिए । प्रिय धर्मचन्त्र जैन एम, ए. ने विषय-सूची
ओर परिशिष्ट बनाये । इन सबका हृदयसे धन्यवाद करता हूँ। साथ ही अपनी
गृहिणी सौ° चमेरीबाई “हिन्दीरत्न' को मी उसकी सतत प्रेरणा, सहायता,
परिषर्या भौर अनुरूप सुविधा प्रदानके लिए धन्यवाद है ।
शम्तमे महावीर प्रेसके संचालक श्री बआबुराकजी फांगुल्लको भी धन्यवाद
दिये बिना नहीं रह सकता, जिन्होंने प्रन्धंका सुन्दर मुद्रण किया और मुद्रण-
सम्बन्धी परामर्श दिये । “दरबाशील्ाक़ कोठिया
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