मनुष्य | Manushay

Manushay Kahani Sangrah by शिव सिंह भाटी हाडला - Shiv Singh Bhati Hadla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ठिकाणेदार..जोरजी ..आपरे_ रणसी गाँव बुलाया है...सो...। हाँ.हॉँ ठीक है..आज रात नै..कूरि नै जोतणे री बारी म्हारी है हो तू-डूगजी राईके नै कैंवती जाई जै कै...सिन्झियाँ पढ़ै...ऊँटा रै...टोले.मे सूँ.चार ऊँट म्हारै..बाखल..े बाघ दैवे.. जी जरूर..जरूर_समाचार पूगा देस्यूँ सा। हॉ..कह दीजै...चार सौ घरों री इण गाँव मे..मोट्यार -मिनरव ...तो रैयों ही_कोनी..सगला..रा सगला..ही लडाईयाँ मे.काम आ गया...अबै तो .मोटयारारी... गिणतती... आगलियों... पर ही पूरी नहीं हौवे। . एक ठण्डा...निस्कॉरा डालकर... बुनझेमन से...तेज कवर नै कहा। दुधारू पशुओ के डट कर पानी पी लेने के वाद तेज कवर ने इनकी सुध ली और इन्हे घेर कर पुन अपने घर की ओर चल पडी। पौ-फटने लगी थी धीरे - धीरे...अन्घेरा लुप्त होकर उजाले मे त्तब्दील हो रहा था। ऊँचे टीवे पर बनी गढी से से ठाकुर हणुतसी.. अपने पडपौते.. भानीसी .. जो मात्र छ सात वर्ष का ही था..अपने पडपौते को आँखों की लाठी बनाये -बाहर निकल रहा था। तेज कवर को यह दृश्य अत्यधिक करूणामय और दर्दनाक लगा। क्योंकि उसकी शादी से कई वरस पहले... हणुतसी. ठिकाणेदार वी सेना की त्तरफ से अत्यन्त वीरतापूर्वक लड़ा परन्तु शैन्यबल की न्यूनता के कारण वह अपने साथियों सहित युद्धबदी बना लिया गया था। जब इन युद्धबंदियो को मुसलमान सेनापति के सामने प्रस्तुत किया गया...तो.हणुतसी ने उस सेनापति खिज्खों की तरफ भरपूर नजरो से देखा. कहते है...इससे -खिखर्खों अत्यधिक कुपित हो उठा और त्तत्काल ही उसने फरमान जारी कर दिया कि गर्म-गर्म ताकलो से हणुतसी की आँखे फोड दी जाए.. हुक्म की तुरन्त ही तामील हुई। नतीजा आज भी तेज कवर के सामने है। मुर्बलाश बना हशुतसी आज भी जिन्दा है। तेज कवर की आँखे डबडबा गई और गला भर आया। तेज कदमों से वह अपने पशुओ को बाड़े मे हाक कर ले आई जहाँ उसकी तीनो विधवा बहुए गायों भैसो वकरियो को दुहने को तत्पर थी। दुहारी के बाद सभी मवेशियो के झुण्ड को लेकर..नेज कवर पुन गाँव के गुवाइ मे आ गई। जहा पूरे गॉव के पशु-टोलो के रुप में डकट्‌ठे हो रहे थे। सम्पूर्ण गॉव के पशुओ को महावारी के हिसाव से वारी-वारी से मनुप्य-शिद सिह भाटी हाइला /15




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