अग्रवाल जाति का विकास | Agrawal Jati Ka Vikas

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Agrawal Jati Ka Vikas  by डॉ परमेश्वरीलाल गुप्त - Dr. Parmeshwarilal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्तावना किसी जाति या उपजाति के निकास तंथा विकास उसकी उन्नति तथा अवनति के ब्रियय में सत्य शान उसकी सोरब रक्षा सान+मर्गादा स्थापना उस्सादोत्तेजन तथा तीव चेतावनी के लिए आवश्यक है--नइस सत्य शन फे लिए परिंअम निर्भीकता विद्वत्ता ओर अम्वेषणशाम्र्थ्य चाहिये । अम्रवार्तों की उत्पत्ति कब और कहाँ से हुई कोन कोन महापुरुष उसके जन्मदाता तथा श्रेयस्कर हुए किस किसने जाति'प्को समृद्धि सम्पत्ति ध बेमब के शिखर पर पहुँचाया किस किस ने छसके लिए यश ओर मत्व प्रात कराया ओर किस किसके द्वारा या किन किन कारणों से इस अग्रवाल उपजाति (या जाति ) का हाम्त हुआ यह सक जानना आवश्यक ही है । कुछ पुराणों में कुछ भाटों ने कुछ मोखिक किंवदन्तियों में कुछ अग्रोहे के खड॒हरों में विद्वान्‌ या सद्ददय सजन इन बातों के पता लगाने का उद्योग करते रहे हैं । कई पुस्तकें भी छप चुकी हैं । किन्तु अमी ऐसा प्रतीत हांता है कि जैसे अधेरे में टटोल्याजी । भी परमेश्ररीलाल गुत जी आजमगढ़ निवासी ने अपने परिश्रम स्वरूप यह पुस्तक लिखी है जो एक भिन्न दृष्टिकोण से इस जटिल समस्या पर प्रकाश डालती है उक्त गुप्तजी की सम्मति में भी अग्रसेन कोई व्यक्ति न थे। इस कारण उनका वक्तव्य है कि अग्रसेन जयन्ती मनाना केबल भ्रम है। इस पर वाद वियाद होगा--किन्तु विषय ऐसा गभीर है जिस पर प्रत्येक विद्वान हितैषी को अपनी सम्मति रखने ओर उसको प्रकाश करने का पूण रूप से अधिकार है ।




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