जीवन और श्रम | Jivan Or Shram

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Jivan Or Shram by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदमी और भला आदमी १३ इसी प्रकार काई श्रहोका वेध करके उनके सम्बन्धकी नई नई बातो का पता लगाता था और कोई किसी धातुका आविष्कार करता था | पर इस सस्वन्धमे सबसे मज़ेदार बात डा० एडमकी है। डाक्टर सहाशय एडिनबराके हाईस्कूलके रेक्टर थे और उन्होंने कई अच्छी अच्छी किताबे लिखी थी । जव आपका फुरसत मिलती थी तब आप वृर नामक पने एक मित्रकी दूकान पर चले जाया करत थे और वही कभी चाकुओ और कैचिया पर सान देते थे और कभी सानका चक्कर चलाते थे। बूंगे भी श्रीक और लैटिन भाषाका बढ़ा भारी परिडत था, इसलिये एक वार दो अँगरेज भले आदमी जो विश्वविद्यालयमे पढ़ते थे, ग्रीक भाषा का एक वाक्य सममनेके लिये उसके पास आये। वह वाक्य बूगेकी समममें तो नही आया, पर वह जरा मसखरा था, इस लिये उसने कहा--“यह्‌ तो बहुत ही सहज है। हमारा चक्कर चलानेवाला मज़दूर ही तुम्हे यह समझा देगा।” यह कह कर उसने डा० एडमसे कहा--“जरा इधर तो आना ।? उनके आने पर उसने वह भीक वाक्य उन्हें दिखलाया ओर उन विद्या्थियोके उसका अथ समझानेके लिये कहा | एडमने चश्मा लगा कर बहुत ही विद्वत्ता-पूवंक उस वाक्यका पूरा पूरा अर्थ उन लोगोका सममा दिया और साथ ही अपने बतलाये हुए अर्थके समर्थनमें बड़े बड़े विद्धानोकी सम्मतियां भी बतला दी । ओर तव वे णर सानका चक्र चलाने चले गये । मजदूरकी चिद्धत्ता देख कर विद्याधियोको परम आश्चय्य हुआ । उन्होंने कहा कि हमने सुना था कि एडिन- वराके साधारण व्यापारी भी बड़े विद्वान होते है, पर इस -वाक्यकी अभी जो व्याख्या हमने सुनी दै बह हमारी आशासे कीं अधिक है ।




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