केनोपनिषद | Kenopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
412
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खंण्ड १ ]
शाडरसाप्याथ्थ ७.
पदु-माष्य
निर्चेदमायान्नास्त्यङतः कृतेन ।
- तडिज्ञानाथ स गरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणिः भोत्रियं जक्षनिष्ठम्
(मु०उ० १1२1 १२)
इत्याद्याथवणे च ।
एवं दि विरक्त प्रत्यगात्म-
निदृत्ाक्ानस्य विषयं विज्ञानं श्रोतु
[৬ मन्तुं विज्ञातुं च
नमू
सामथ्यशुपपचते,
नान्यथा 1 एतस्माच प्रत्यगारम्-
लोकोकी परीक्षा कर वैराग्यको प्राप्त
हो जाय, क्योकि कृत (कर्म) के
द्वारा अकृत ( नित्यखरूप मोक्ष )
प्राप्त नही हो सकता। उसका
विशेष ज्ञान ग्राप्त करनेके लिये तो
उस ( जिज्ञा ) को हाथमे समिधा
टेकर् श्रोत्रिय ओर ब्रह्मनिष्ठ युस्के ही
पास जाना चाहिये” इत्यादि ।
केवर इस प्रकारसे ही विरक्त
पुरुपको प्रत्यगात्मविपयक्र विज्ञानके
श्रवण, मनन ओर् साक्षात्कारकी
क्षमता हो सकती है, और किसी
तरह नही । इस प्रत्यगात्माके
' बाक्य-भ्राष्य
९.
भवन्ति तन्निवेतेकाश्रयप्राण-
सस्कारके ही कारण होते है। “देवयाजी
विज्ञानसहिितानि । “देबयाजी | श्रेष्ठ है या आत्मयाजी” इस प्रकार
श्रेयानात्मयाजी बा” इत्युपक्र-
स्यात्मयाजी तु करोति “इदूं
मेडनेनाहुं संस्क्रियते इति'? संस्फा-
रा्थमेव कर्माणीति वाजखनेयक्े।
“महायज्ञे यज्ञेश्च च्ाह्मीय॑
क्रियते तनुः (मन्नु० २। २८)
“यज्ञो दानं तपश्च पावनानि
मनीषिणाम्” (गीता १८ । ५)
इत्यादि स्मुतेश्च 1
प्राणादिविज्ञानं च केव कर्म
आरम्म करके वाजसनेय श्रुतिमे कहा
है कि आत्मयाजी अपने सत्कारे
लिये ही यह समझकर कर्म करता है
कि “इससे मेरे इस अगका सस्कार
होगा ?? | “यह दरीर महायज्ञ और
यज्ञोद्वारा ब्रह्मज्नानकी ग्राप्तिके योग्य
किया जाता है।”? “यज्ञ, दान और तप-
ये विद्धानोको पवित्र करनेवाले ही है””
इत्यादि स्मृतियोसे मी यही बात सिद्ध
होती है 1
अकेला या कर्मके साथ मिका हुआ
ससुतं चा सकामस्य प्राणात्म- | होनेपर भी प्राणादि विज्ञान सकाम
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