अनेकान्त भाग - 8 | Anekant Bhag - 8

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Anekant Bhag - 8 by जुगलकिशोर मुख़्तार - Jugalkishaor Mukhtar

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किरण १1 ग़दरसे पदलेकी लिखी हुई ५३ बषेकी 'जंत्रीखास' १३ बद्ादुरकी दग्ध अस्थियां यानी फूल मौज़ा गदरहेडीमें बहुत बड़े हजूमके साथ दफनाए गये । १५ মান १८४१, सो सवार--क्ञा ० मुहरर्सिंह (सहा- हरनपुर) भ्रौर सरयद मेहरबानअ्रत्नी (चिलकाना) ন করা सरसावाके ४ बस्वे(चोथ।हं जमीदारीके) नीलम खरीद | २० माच १८४१ शनिवार-- मुन्शी कालेराय साब (सुल्तानपुर नि०) मुजफ्फरनगरके डिप्टीकलक्टर हुए । २५ जून १८४९१, शुक्रतरार--वषौका छाजला (प्रथमा- बतार) मालामाज्ञ करने वाला हुआ और तमाम जंगनल्ल আবলিল্ত नफ़र आने लगा । १४ दिसम्बर १८४१, मंगल--चचा गुलाबसिंह का स्वर्गंवास हुआ । १६ दिसम्बर १८४१, रविवार--नव्वाब दोशमुद्द- स्मदखां दुरोनी म्र ढेढ़ सौ आ्रादमियोंके समूदरके कस्या करनालसे चलकर सहारनपुरमें दाखिन्न हुए । ४ माच १८७२, शॉनिवार--एथ्वीपर रातके समय भूकर्प हुआ | २२ जून १८४२ वुध--व्षाका दाला हुश्रा श्रीर खू्र वषा हु, यहां तक कि वाकी बाद्त संसदा घर के च पक्के हर शहर व गात्रम वर्वाद होग्ये श्रौर भादमी तथा जानवर बहुत भर गये । २५ जुलाई १८४२, सोमवार--पांच विस्वे जमी दारी कस्बा सरसावाकी डिप्री डिप्टशिख अहमद मुन्सिफसा ० की तजबी जसे बरूमल (पिसर ज्ञा० सुदरसिंह) व सैथद जामिनश्रज्ी ( पिप्षर मेहरवानश्रली)) के नामपर (हकमें) होगईं । र८ अगस्त १८४२, रविवार--मिती सप्तमीकों क्ा० मुहरसिंहके बागका सगून (मुहूतं) बारहे मुन्सरिम (मसख्रदूम ? . शाह सरसावा खासमें (हुश्रा) । १० नवम्बर १८४२, गुरुतवार--मन्दिरजीके साथ वास्ते जाज्ा हस्तिनापुरके ग्ये। २ दिसम्बर १८४२, शुक्रवार--भोहदा वकाह्ृत देहरादून बनाम बख्तावरथह्ठ (पिसर जोराबरलिंह सरसावा) १ आप उक्त ला» जोरावरसिंदजी कानू गेके छोटे भाई थे । आपके तीत पृत्र रंजीतर्सिह, दलपतराय और गोविन्दराय हुए हैं। पिछले दानों पुत्रोके वंशज मौजूद हैं | मंजूर हुश्ा । ११ से १८ दिसम्बर, रविवारस शनिबार--चेवक की बीमारीमें संकडों बच्चे सर गये । দল जनवरी १८५४३, शनिवार--इस तारीख़रमें मुन्सिफ साहब विलकानेका वह फेसला जजसाहबकोी अदालतसे बहाल व बरकरार ४हा जिसमें सरसावाकी पांच बिस्‍्वे जमींदारी मिल्कियत सरफ़राज़शरली, रहमबफ़श »ोर पीलखां वरगैरहकी ज्ञा० बारूमल व संयद रमतानअली मुश्तरियान नीलामके नाम की गईं थी । ६ अप्रैल १८४३, रव्रिवार--रुबाई (श) तारीख वाग दूलहराय (क्लिखी गहं) -- बारा नो शुद अजीब ताजा फ़िज्ञाए, प्रहर हर ব্রাল-স্মাম जल्ब्रा नुमाएं। माल तारीस्न बा - मुसम्मा शुद, दातिफे गुफ्त बाग दूलहराय ॥ রর चत २४७ सवत्‌ ५४०० ९ मई १८४३, सोमवार--गज़टमें हुक्स है कि कागज रटननामा ब हिवेनामा वगीरह জিলা दस्तस्वत- रजिष्टरीके नाजायज होंगे । १४ जुलाई १८४३, शनिवार- सदरसे जारी हुए বাজ मवस्ष: ११ जुलाहके श्नुषार कलक्टर्‌ सा० बहादुर का पर्वाना बनाम पार्सदास स्वनानचखी बाबत लिखने नाम लेने वाद्भे (खरीदार) काग़ज़ (स्टाम्प) का मय कोमत व (वल्दियत) व सकूनत वररह य तारीस्व वगैर इक प्राप्त हुआ। २५ जुल,ई ४८४३, सोमवार-- कस्या सरसावाके ॐ विभ्वा (जमींदारी) पर त्वा० बारूमल व सरयद जामिन (रमजान ?)अलीका दखऩ तहसील सरसावामें होगया। २० शअ्रक्तृुबर १८४३, शुक्रतार--छाद्टौरके वाली सरदार शेर लिंदके फूल मय पुत्र वस्तीक सदह्दारनपुरमें हजूम के साथ आए (हरद्वार जानक किये) | ४२ दिसम्बर १८४३, शुक्रवार--जनाक्र हारवे साहब कलक्टर बहादुर सरमावामं रौनक चफ़्ररोज हष धीर मूलच ह (य नृलखन्द) क पासम श्रगाराडा (१) ६५) रु० कीमतमे स्वरीद किया ; १ जून १८४०४, शनिवार--घदी श्राध् घडी) (यक- नीमपाश) दिन बाकी रहा था कि पूज्य पिताजी दुल्कहराय




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