पौराणिक कोश | Pooranik Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42.34 MB
कुल पष्ठ :
582
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डर
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७
अंशुमान-अक्षयकुमार
श्रीकृष्णके यश्ञके घोड़ेके साथ रक्षाध॑ भेजा गया था (भाग०
१०,८९.र९५३) । (हे) एक आदित्यका नाम (मत्स्य०
६.४.) । (४) पंचजनके पुत्रका नाम जिसका विवाह हृवि-
ष्मंत्त पितकी मानस-पुत्रीसे हुआ था । (५) कैशिकके एक
पुत्रका नाम । पूर्वजन्ममें यह मानसमें चक्रवाक था (मत्स्य०
२०-१८) 1
अंशुमान-पु० [संग] (१) सूयका एक नाम । (२) अस-
मंजसके पुत्र तथा राजा सगरके पौनत्रका नाम । राजा सगरके
अश्वमेघ यज्ञका घोड़ा यही हूँढ़कर लाये थे । महाराज सगरके
६०,००० पुत्रोंके झावकों इन्होंने पाया था । (नारदपुराण-
पूर्व भाग; प्रथम पाद तथा विष्णु पुराण चतुर्थ अंझा) ।
अकंपन-पु० [सिं०] एक राक्षस जो रावणका अनुचर था और
खरके वधका समाचार रावणसे इसीने कहा था (रामायण-
वबालका ० दो० १८०) । कुमुद नामक वानरने इसका वध किया
था (संद० ब्ाह्मखंड, सेतुमाहात्म्य) !
अकम्पन-पु० [सिं०] हिरण्यकशिपुकी सभाके एक असुरका
नाम (मत्स्य० १२६१-८१) । यह खशाके गर्भसे उत्पन्न एक
राक्षसका पुत्र था (जह्मा० रे.७.१३६; वायु०--६९-१६७) ।
अकल्मघ-पु० मिं०] तामस मनुके एक पुत्रका नाम जो
चौथे मनु थे--मत्स्य० ९.१७ ।
अकोप-पु० [सिं०] अयोध्यापति
एक-ररामायण।
दद्यरथके <८ मंत्रियोंमेंसे
अक्रिय-पु० [सिं०] गंभीरके पुत्रका नाम । जाह्मण नामक |
इनका एक पुत्र था (भाग०---९.१७.१०) ।
अक्रर-पु० [सं०] (१) एक यादवका नाम जो श्रीकृष्णके चाचा
लगते थे । यह श्वकफलक और गांदिनीके पुत्र थे । स्कंद-
पुराणानुसार पूर्व जन्ममें यह चंद्र नामक जाह्मण थे । हरिद्वार
निवासी देवशर्मा नामक अत्रिकुलोत्पन्न ब्राह्मणके यह शिष्य
तथा जामाता थे जिनकी गुणवत्ती नामक पुत्री ब्याही थी ।
श्रीकृष्ण और वलदेव इन्हीं ( अक्रर) के साथ मधुर गये थे ।
सन्नाजितकी स्यमंतक मणि लेकर यह काशी चले गये थे !
उपदेव नामक इनका एक पुत्र था (स्कंद० वैष्णवखंड
कात्तिकमा०) ।
(९) एक यादव राजकुमारका नाम जो कृष्ण ओर दलदेवके
दृस्तिनापुरसे लौटनेपर वसुदेव आदिके साथ नगरके दाहर
स्वागतार्थ उपस्थित थे और उनको बाजेगाजेके साथ द्वारका
ले गये थे (भाग० १.११.१६; १४.२८) । उग्रसेनकी एक
पुत्रीसे इनका विवाह हुआ था जिसके गर्भसे देववान और
उपदेव नामक इनके दो पुत्र उत्पन्न हुए थे (भाग० ९. २४.-
श५,१७.१८; जहां २७१.११३; विष्णु० ४.१३.१२६
इ४.७.१०; वायु० ९६.११२) | कंसके उत्पीड़नसे यादवोंके
अन्यान्य देशोको चले जानेपर यह मधुरामें ही रह गये थे
(माग० १०.२८४) । कहते है यदद एक वार “्रह्महद” (प्रथम
वर्गके १९ नक्षजोंमेंमे एक जिसे अँगरेजीमें कैपेल्ला कहते है)
गये थे (माग० १०.२८.१६) । कंसने श्रीकृष्ण और वलराम-
को धनुवज्ञके अवसरपर मथुरा बुला लानेका भार इन्हीं पर
मौपा था (भाग० १०.३६.२७-४०) । गोपियोको जब यह
पता चला तो वे अक्रूरको क्र कहने लगी थी क्योंकि कृष्ण-
बलदेववा वियोग उनके लिए असछ्य था (भाग० १०.३९,-
२१-२६) । श्रीकृष्ण तथा बलराम को लेकर अक्रुरने प्रातः
काल मथुराके लिए प्रस्थान किया था । यमुनाके किनारे
पहुँचनेपर अक्रर कृष्ण तथा बलराम को रथपर बैठनेका आदेश
दे स्वयम् स्नान करने गये । पर जब जलमें; रथपर स्वंत्र
कृष्ण ही कृष्ण दिखलायी पड़े तब अक्ररके आश्च्यैकी सीमा
न रही (भाग० १०.३९, ३२-७७ विष्णु० ५.१८.११-१९) |
भगवान् विष्णुके दर्शन पाकर वे कृतकृत्य हो स्तुति वरते हुए
सबको लेकर सू्यास्तके पहले मथुरा पहुँच गये (भाग० १०.-
उश.४-द) | कंसकों कृष्णके आनेकी सूचना देकर अक्रर
अपने घर चले गये । धनुयंज्ञके समय यह यज्ञ स्थलपर थे ।
कंस वधके पश्चात् कृष्ण, वलराम और उद्धव इनके घर गये ।
इन्होंने उनका राजसी स्वागत किया (भाग० १०.४८.१२-
२८) । श्रीकृष्ण इन्हें अपना गुरु मानने थे तथा संकटकालमें
इनके आदेशॉकी श्रतीक्षा करते थे । पाण्डवॉकी स्थितिका पूर्ण-
रूपेण अध्ययन करनेके लिए श्री कृष्णकी प्रार्थनापर वह
हस्तिनापुर गये थे (भाग० १०.४८.२९-३५) । कुन्तीसे भेंट
कर तथा घ्रृतराष्ट्रकी कूटनीति समझकर यह लौर आये थे
(माग० १०८४९.१-३१) । जरासन्धके युद्धके समय श्री कृष्ण-
ने इनसे परामर्श किया था । यह यादव सभाके सभासद थे।
स्यमंतक मणिके सम्बन्ध्मे झगड़ा होनेपर शतधन्वाने कृष्ण
के विरुद्ध इनकी सहायता चाही थी पर यही सहमत नहीं
हुए । झतधन्वाने सन्राजितका वधकर स्यमंतक मणि प्राप्त
किया पर उसे अक्रूरके ही पास सुरक्षित छोड़ दिया था
(भाग० १०,५७.१४-१८) । श्रीकृष्ण तथा बलरामके हाथों
जब झतधन्वा मारा गया तब यह बहुत डर गये और द्वारका
छोड़ स्यमंतक मणि ले काशी चले गये थे । अक्ररके चले
जानेपर अनावृष्टि तथां अनेक उपद्रव दोने लगे । श्रीकृष्ण
की प्रार्थनापर यह पुनः द्वारका लौट आये और अपने
पासकी स्यमंतक मणि शंका निवारणार्थ इन्होंने भगवान्
कृष्णको दी । भगवान्ने वन्धु-वान्ववोंकी भरी सभामें सबको
दिखलाकर अपना अयदा मिटाकर मणि अक्ररकों लौटा दी
(भाग० १०८४७. ३-४१) । राजसूय यज्ञके समय यह द्वारका-
में थे (माग० १०.७६.१४) । योदवोंकी आपसी लड़ाईमें यह
प्रभास नामक स्थानपर मारे गये थे (भाग० ११.३०.१६) ।
(३) एक काद्रवेय नागका नाम (जह्मां० २८७.३६) । (४)
महदासेन एक वरमूत्ति (न्रह्मां० ४.४४- ४०) । (९) अनमिन्न-
वंदाज जयंतके एक पुत्रका नाम जिसका विवाह शौव्याकी
पुत्री रत्नासे हुआ था। उससे इसके ग्यारह पुत्र हुए (मत्स्य ०
'इनिर७-८) ।
अक्रोधन-पु०[सं०] (१) त्वरितायु या आयुके पुत्रका नाम
(मत्स्य० ५०८३७) । (२) अयुतायुके पुत्रका नाम । यह
देवातिथिके पिता थे (वायु० ९९.२३२) ।
अक्ष-पु० [सं०] (१) लंकापति रावणका पुत्र अक्षयकुमार
जिसका बध लंका उजाइते समय दनुमानने किया था (रामा-
यण सुन्दरकाण्ड दो० १७.१८) (२) विष्णुवाहन गरुड़का
एक नाम (भाग०) । (३) पातेका खेल जिसे क्रतुपर्णसे
राजा नलने सीखा था (मत्स्य० १५४.'२०; र२०.८) ।
ऋतुपर्ण इस खेलमें दक्ष थे । (४) दनु दानवका एक पुत्र
(ब्रह्मां० 3.६.११) । (१) सत्यमामाके गर्भसे उत्पन्न श्रीकृष्ण-
के एक पुत्रका नाम (जह्मां० डे.७१-२४७; वायु० ९६.२३८) ।
अक्षयकुमार-पु० [सं०] -दे० अक्ष १ ।
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