पौराणिक कोश | Pooranik Kosh

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Pooranik Kosh by राणाप्रसाद मिश्र - Rana Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डर श्लु दब ७ अंशुमान-अक्षयकुमार श्रीकृष्णके यश्ञके घोड़ेके साथ रक्षाध॑ भेजा गया था (भाग० १०,८९.र९५३) । (हे) एक आदित्यका नाम (मत्स्य० ६.४.) । (४) पंचजनके पुत्रका नाम जिसका विवाह हृवि- ष्मंत्त पितकी मानस-पुत्रीसे हुआ था । (५) कैशिकके एक पुत्रका नाम । पूर्वजन्ममें यह मानसमें चक्रवाक था (मत्स्य० २०-१८) 1 अंशुमान-पु० [संग] (१) सूयका एक नाम । (२) अस- मंजसके पुत्र तथा राजा सगरके पौनत्रका नाम । राजा सगरके अश्वमेघ यज्ञका घोड़ा यही हूँढ़कर लाये थे । महाराज सगरके ६०,००० पुत्रोंके झावकों इन्होंने पाया था । (नारदपुराण- पूर्व भाग; प्रथम पाद तथा विष्णु पुराण चतुर्थ अंझा) । अकंपन-पु० [सिं०] एक राक्षस जो रावणका अनुचर था और खरके वधका समाचार रावणसे इसीने कहा था (रामायण- वबालका ० दो० १८०) । कुमुद नामक वानरने इसका वध किया था (संद० ब्ाह्मखंड, सेतुमाहात्म्य) ! अकम्पन-पु० [सिं०] हिरण्यकशिपुकी सभाके एक असुरका नाम (मत्स्य० १२६१-८१) । यह खशाके गर्भसे उत्पन्न एक राक्षसका पुत्र था (जह्मा० रे.७.१३६; वायु०--६९-१६७) । अकल्मघ-पु० मिं०] तामस मनुके एक पुत्रका नाम जो चौथे मनु थे--मत्स्य० ९.१७ । अकोप-पु० [सिं०] अयोध्यापति एक-ररामायण। दद्यरथके <८ मंत्रियोंमेंसे अक्रिय-पु० [सिं०] गंभीरके पुत्रका नाम । जाह्मण नामक | इनका एक पुत्र था (भाग०---९.१७.१०) । अक्रर-पु० [सं०] (१) एक यादवका नाम जो श्रीकृष्णके चाचा लगते थे । यह श्वकफलक और गांदिनीके पुत्र थे । स्कंद- पुराणानुसार पूर्व जन्ममें यह चंद्र नामक जाह्मण थे । हरिद्वार निवासी देवशर्मा नामक अत्रिकुलोत्पन्न ब्राह्मणके यह शिष्य तथा जामाता थे जिनकी गुणवत्ती नामक पुत्री ब्याही थी । श्रीकृष्ण और वलदेव इन्हीं ( अक्रर) के साथ मधुर गये थे । सन्नाजितकी स्यमंतक मणि लेकर यह काशी चले गये थे ! उपदेव नामक इनका एक पुत्र था (स्कंद० वैष्णवखंड कात्तिकमा०) । (९) एक यादव राजकुमारका नाम जो कृष्ण ओर दलदेवके दृस्तिनापुरसे लौटनेपर वसुदेव आदिके साथ नगरके दाहर स्वागतार्थ उपस्थित थे और उनको बाजेगाजेके साथ द्वारका ले गये थे (भाग० १.११.१६; १४.२८) । उग्रसेनकी एक पुत्रीसे इनका विवाह हुआ था जिसके गर्भसे देववान और उपदेव नामक इनके दो पुत्र उत्पन्न हुए थे (भाग० ९. २४.- श५,१७.१८; जहां २७१.११३; विष्णु० ४.१३.१२६ इ४.७.१०; वायु० ९६.११२) | कंसके उत्पीड़नसे यादवोंके अन्यान्य देशोको चले जानेपर यह मधुरामें ही रह गये थे (माग० १०.२८४) । कहते है यदद एक वार “्रह्महद” (प्रथम वर्गके १९ नक्षजोंमेंमे एक जिसे अँगरेजीमें कैपेल्ला कहते है) गये थे (माग० १०.२८.१६) । कंसने श्रीकृष्ण और वलराम- को धनुवज्ञके अवसरपर मथुरा बुला लानेका भार इन्हीं पर मौपा था (भाग० १०.३६.२७-४०) । गोपियोको जब यह पता चला तो वे अक्रूरको क्र कहने लगी थी क्योंकि कृष्ण- बलदेववा वियोग उनके लिए असछ्य था (भाग० १०.३९,- २१-२६) । श्रीकृष्ण तथा बलराम को लेकर अक्रुरने प्रातः काल मथुराके लिए प्रस्थान किया था । यमुनाके किनारे पहुँचनेपर अक्रर कृष्ण तथा बलराम को रथपर बैठनेका आदेश दे स्वयम्‌ स्नान करने गये । पर जब जलमें; रथपर स्वंत्र कृष्ण ही कृष्ण दिखलायी पड़े तब अक्ररके आश्च्यैकी सीमा न रही (भाग० १०.३९, ३२-७७ विष्णु० ५.१८.११-१९) | भगवान्‌ विष्णुके दर्शन पाकर वे कृतकृत्य हो स्तुति वरते हुए सबको लेकर सू्यास्तके पहले मथुरा पहुँच गये (भाग० १०.- उश.४-द) | कंसकों कृष्णके आनेकी सूचना देकर अक्रर अपने घर चले गये । धनुयंज्ञके समय यह यज्ञ स्थलपर थे । कंस वधके पश्चात्‌ कृष्ण, वलराम और उद्धव इनके घर गये । इन्होंने उनका राजसी स्वागत किया (भाग० १०.४८.१२- २८) । श्रीकृष्ण इन्हें अपना गुरु मानने थे तथा संकटकालमें इनके आदेशॉकी श्रतीक्षा करते थे । पाण्डवॉकी स्थितिका पूर्ण- रूपेण अध्ययन करनेके लिए श्री कृष्णकी प्रार्थनापर वह हस्तिनापुर गये थे (भाग० १०.४८.२९-३५) । कुन्तीसे भेंट कर तथा घ्रृतराष्ट्रकी कूटनीति समझकर यह लौर आये थे (माग० १०८४९.१-३१) । जरासन्धके युद्धके समय श्री कृष्ण- ने इनसे परामर्श किया था । यह यादव सभाके सभासद थे। स्यमंतक मणिके सम्बन्ध्मे झगड़ा होनेपर शतधन्वाने कृष्ण के विरुद्ध इनकी सहायता चाही थी पर यही सहमत नहीं हुए । झतधन्वाने सन्राजितका वधकर स्यमंतक मणि प्राप्त किया पर उसे अक्रूरके ही पास सुरक्षित छोड़ दिया था (भाग० १०,५७.१४-१८) । श्रीकृष्ण तथा बलरामके हाथों जब झतधन्वा मारा गया तब यह बहुत डर गये और द्वारका छोड़ स्यमंतक मणि ले काशी चले गये थे । अक्ररके चले जानेपर अनावृष्टि तथां अनेक उपद्रव दोने लगे । श्रीकृष्ण की प्रार्थनापर यह पुनः द्वारका लौट आये और अपने पासकी स्यमंतक मणि शंका निवारणार्थ इन्होंने भगवान्‌ कृष्णको दी । भगवान्‌ने वन्धु-वान्ववोंकी भरी सभामें सबको दिखलाकर अपना अयदा मिटाकर मणि अक्ररकों लौटा दी (भाग० १०८४७. ३-४१) । राजसूय यज्ञके समय यह द्वारका- में थे (माग० १०.७६.१४) । योदवोंकी आपसी लड़ाईमें यह प्रभास नामक स्थानपर मारे गये थे (भाग० ११.३०.१६) । (३) एक काद्रवेय नागका नाम (जह्मां० २८७.३६) । (४) महदासेन एक वरमूत्ति (न्रह्मां० ४.४४- ४०) । (९) अनमिन्न- वंदाज जयंतके एक पुत्रका नाम जिसका विवाह शौव्याकी पुत्री रत्नासे हुआ था। उससे इसके ग्यारह पुत्र हुए (मत्स्य ० 'इनिर७-८) । अक्रोधन-पु०[सं०] (१) त्वरितायु या आयुके पुत्रका नाम (मत्स्य० ५०८३७) । (२) अयुतायुके पुत्रका नाम । यह देवातिथिके पिता थे (वायु० ९९.२३२) । अक्ष-पु० [सं०] (१) लंकापति रावणका पुत्र अक्षयकुमार जिसका बध लंका उजाइते समय दनुमानने किया था (रामा- यण सुन्दरकाण्ड दो० १७.१८) (२) विष्णुवाहन गरुड़का एक नाम (भाग०) । (३) पातेका खेल जिसे क्रतुपर्णसे राजा नलने सीखा था (मत्स्य० १५४.'२०; र२०.८) । ऋतुपर्ण इस खेलमें दक्ष थे । (४) दनु दानवका एक पुत्र (ब्रह्मां० 3.६.११) । (१) सत्यमामाके गर्भसे उत्पन्न श्रीकृष्ण- के एक पुत्रका नाम (जह्मां० डे.७१-२४७; वायु० ९६.२३८) । अक्षयकुमार-पु० [सं०] -दे० अक्ष १ ।




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