टॉल्सटॉय की डायरी | Tolstoy Ki Dayari

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Tolstoy Ki Dayari  by राजबहादुर सिंह - Rajbahadur Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) [ १८५४ ] ६ फवेरी, १८०७ ई० को जब टॉल्सटॉय याश्नाया पोल- याना के निकटवर्ती तुज्ञा-नगर में थ, उन्हे एक सरकारी हुक्म मिला कि उन्हे कमीशन प्रदान किया गया हैं ओर उनकी नियुक्ति डेन्यूब की सना मे {& जाती है। यह उन द्रख्वास्तो का नतीजा था, जो टॉल्सटॉय ने सिलिस्ट्रिया- स्थित सेना-नायक जनरल प्रिंस एम० डी० गोर्शाका के पास भेजी थीं। पाठकों को स्मरण रखना चाहिए, किं इन जनरल-महोद्य के दो भाई ( जिनमे से एक वह था, जिसने संवम्टोपोल के घेरे मे पैदल सेना के अध्यक्ष का काम किया था ) थे, ओर तीन भतीजे । डायरी में जहाँ 'गोशौका” का जिक्र किया गया है, वहाँ यह बात स्पष्ट नहीं है, कि उक्त पॉच गोशी- काओं में से वहाँ किसकी चर्चा की गयी है। गोशाका- परिवार ओर टॉल्सटॉय-परिवार मे रिश्तेदारी थी । फवेरी के अन्त में टॉल्सटॉय घर से रवाना हुए, ओर घाड़ों पर २००० मील की यात्रा छरके कस्क, पोलतावा बालटा ओर किशीनेव होते हुए १२ मा को बुखारेस्ट पहुँचे | प्रिंस गोशाका ने उनको अच्छी आव-भगत की पर उन्हें अपने स्टाफ़ मे नहीं शामिल किया, ओर उनकी ड्यूटी आल्तेनित्सा-स्थित तोपस्राने पर लगा दी । यह नियुक्ति स्थायी नहीं थी; क्‍योंकि थोड़े ही दिना बाद उनकी बदली दक्षिणी सेना के प्रधान-नायक जनरल सज़ेपुटोव्स्क्री के स्टाफ मे हो गयी । २७ मई को वे उस स्टाफ़ में सम्मिलित हुए और गढ़ी के घेरे में उन्होंने भाग लिया ।




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