तुलसी की जीवन - भूमि | Tulsi Ki Janmbhumi

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Tulsi Ki Janmbhumi by चन्द्रबली पांडे - Chandrabali Panday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट जेसोई रुचिर चार चरित सियापति को, तैसोई कलित कठ कान्य तुख्सी को ই | ৮ ৯ ৯ অন ভী सब नेम धर्म संजम सिराय जाते, - লালা पिता बालक को वेदे न पढ़ावते | आमिष अहारी बिमचारी होते भारी लोग, कोऊ रघुनाथ जू की चरचा न चलावते । छुटि जाते नेम धमं आश्रम के चारो बनं, ऐसे कछिकाल में कराछ दुख पावते । होते सब कुचाछी सो सुचाली भने “महाराज; जो पे कवि तुल्सीदास भाषा न बनावते ॥ ९ ৮ ৮ उपमा सनक धुनि माब रस उक्ति जुति छंद ओ प्रबंध सनबंध सिख देस फाल | ज्ञान योग भक्ति अनुराग भौ बिराग विने, नीति परतीति प्रीति रीति भीति जगनाल । छोक गति बेद गति चित्र गति पर गति इंस गति जति राम रति तति सति हाल | तुछसी जू एते गायो रामायन रघुराज॑, बरबस फीन्ही निज बस दसरथ छाल || > ৮ ১ यह खानि चतुष्फछ की सुखदानि अनूपम आनि हिये हुलसी । पुनि संतन के मन रू गन फो अति मंजर मार रूसी तुलसी | पुनि मानुष के तरिबे कहँ (तोषः भद्रं भवसागर के पुछ सी । सब कामन दायक कामदुहा सम रामकथा बरनी ठुछसी ॥ कदन पतिनः तित




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