तुलसी की जीवन - भूमि | Tulsi Ki Janmbhumi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
315
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जेसोई रुचिर चार चरित सियापति को,
तैसोई कलित कठ कान्य तुख्सी को ই |
৮ ৯ ৯
অন ভী सब नेम धर्म संजम सिराय जाते, -
লালা पिता बालक को वेदे न पढ़ावते |
आमिष अहारी बिमचारी होते भारी लोग,
कोऊ रघुनाथ जू की चरचा न चलावते ।
छुटि जाते नेम धमं आश्रम के चारो बनं,
ऐसे कछिकाल में कराछ दुख पावते ।
होते सब कुचाछी सो सुचाली भने “महाराज;
जो पे कवि तुल्सीदास भाषा न बनावते ॥
९ ৮ ৮
उपमा सनक धुनि माब रस उक्ति जुति
छंद ओ प्रबंध सनबंध सिख देस फाल |
ज्ञान योग भक्ति अनुराग भौ बिराग विने,
नीति परतीति प्रीति रीति भीति जगनाल ।
छोक गति बेद गति चित्र गति पर गति
इंस गति जति राम रति तति सति हाल |
तुछसी जू एते गायो रामायन रघुराज॑,
बरबस फीन्ही निज बस दसरथ छाल ||
> ৮ ১
यह खानि चतुष्फछ की सुखदानि अनूपम आनि हिये हुलसी ।
पुनि संतन के मन रू गन फो अति मंजर मार रूसी तुलसी |
पुनि मानुष के तरिबे कहँ (तोषः भद्रं भवसागर के पुछ सी ।
सब कामन दायक कामदुहा सम रामकथा बरनी ठुछसी ॥
कदन पतिनः तित
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