मालवी कहावतें भाग - १ | Maalavii Kahaavatai Bhaaga 1

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Maalavii Kahaavatai Bhaaga 1 by रतनलाल महता - Ratanlal Mahata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मालवबी कद्दावतें २ ओर मेवाड़ के इस युद्ध कौ बागडोर प्रसिद्ध राठोर वीर जयमल राव तथा उनके साथियों के दवाथ में सोंप दी गई । राव जयमल मारवाड़ के प्रसिद्ध अधिषति जोधाजी के चतुथ पुत्र दूदाजी राव के प्रपोत्र थे, राज जोघाजी मेरता ओर मेंडृतिया के मूज्ञ संस्थापक. माने जात हैं । मेड़ता से राव जयमल्ल वि० सं० १६११ में मंवाड़ के महाराणा के पास आये ओर वि० सं० १६२४ चत्र कृष्णा ११ को अकबर के साथ हुए चित्तोड़ के युद्ध में बीर गति को प्राप्त हुए । जिनका वन इतिद्दासकारों ने मुक्त कंठ से किया है | इनके घाद शामशस जौ का हल्दीघाटी में काम प्राना भी इतिहास प्रश्चिद्ध है। इनके गंशज भी संहट के समय महाराणा कौ सेवा में उपस्थित रहते थे। बदनीर इन्द्रीं के उंशजों की ज्ञागीर प्रें चला आता है। यह मेवाड़ राज्य छा प्रथम श्रेणी ठिकाना है। ठाकुर इनकी पदवी है। महाराणा की तरफ से सभी प्रकार की पद प्रतिष्ठा इन्हें प्राप्त हैें। बदनौर अजमेर से ५९ मील दक्तिण पश्चिम में सथा उदयपुर से १०० मील छत्तर पूरे में पढाड़ियों के मध्य बसा हुज्ञा है। बदनोर के के राज प्राखाद पहाड़ों की उपत्यकाने मध्य ग्रधुरिम छुटा के साथ अपने प्राचीन गौरव की आज़ भी गाथा प्रकट कर रहे हैं तथा भक्ति मती मीरां और जयमक्ष को यशोधारिणी कीति का मौजूदा नाम आज के ठाकुर साहिब के व्यक्तित्व से भ्रस्फुटित हो रहा है। यहाँ के ठाकुर मेढ़बिया शाखा के कहलाते हैं। बदनौर इलाके में १०० के ऊपर गाँव जागीर में प्राप्त हुए थे ।




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