कहानी संग्रह | Kahani Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
127
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रायश्रत
है। सो उससे ক্লু न मोडो |”
एक ठण्डी सास छेते हुए रामू की मां ने कहा-- 'अब तो
নাও জী লাল नचाएंगे नाचना ही पड़ेगा |”
पंडित परमसुख ज़रा कुछ बिगड़ कर बोले-- राम की
माँ | यह तो रुशी की बात है, अगर तुम्हें यह अखरता है तो
ने करो | ' में चछा--'इतना कह कर पंडित जी ने पोथी-पत्रा
बटोरा |
“अरे पंडितजी रामू की मा को कुछ नहीं अखरता।
बेचारी को कितना दुःख हे ँ-विगड़ो ना |” मिसरानी, छुन््नू
की दादी ओर किसन् की माँ ने एक स्वर में कहा।
रामू की माँ ने पंडितजी के पर पकड- और पंडितजी ने
अब जम कर आसन जमाया |
“ओर क्या हो ?' राम की मां ने पूछा ।
“इक्कीस दिन के पाठ के इककीस स्पप् ओर इक्कीस
दिन तक दोनों वक्त पॉाँच-पाँच व्राह्मर्णो को भोजन करवाना
पडेगा।” कुछ रूक कर पंडित परमसुख ने कद्दा - “सो इसकी
चिन्ता न करो, में अकेला दोनों समय भोजन कर लेगा और
मेरे अकेले के भोजन करने से पाँच वाद्यणों के भोतज्नन का फल
मिल जाएगा ।'
“यह तो पंडितजी ठीक कहते हैं, पंडितजी की तोंद
तो देखो!” मिखरानी ने मुस्करराते हुप पंडिनजी प
व्यजड्र किया ।
६२
User Reviews
No Reviews | Add Yours...