आर्य संस्कृति का मूल तत्व | Ariya Sanskarti Ka Mool Tatav

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Ariya Sanskarti Ka Mool Tatav by प्रो. सत्यव्रत सिद्धांतालंकार - Prof Satyavrat Siddhantalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आये-सस्कृतिका केन्द्रीय-विचार ९ नोचा हो वहां मोरे हो, परन्तु सोटरोपर वैठकर लोग डाके डालते हो; रेडियो हो, परन्तु रेडियोपर अश्लील ओर गन्दे ही गाने गाये जाते हो । इस अवस्थामें उस देशको सभ्यता ऊची, परन्तु सस्कृति नीची कही जायगी । यह भी हो सकता है कि एक देश भौतिक-दृष्टिसे नीचें स्तर में हो, परन्तु आत्मिक-स्तरमें बहुत ऊंचा उठा हुआ हो । उस देशके वासी दूसरेके दु.खमेदुखी होते हो, इसरेके कल्याणकरे लिये अपने स्वार्थ को तिलाजलि देते हो, झूठ, बेईमानी, दुराचारसे दूर रहते हो, परच्तु दे मोटरोके बजाय बेलगाडियोमें चलते हो, महलोके वजाय झोपडोमें रहते हो १ इस अजस्थारें यह देश सभ्यतामें भले ही पिछडा हुआ गिना जाय, परन्तु सस्कृतिमें उस देशके सामने सिर झुकाना होगा। इस विवेचनसे यह्‌ स्पष्ट दही जाता हं कि 'सभ्यता' तथा सस्कृति में ऊचा स्थान संस्कृतिका है--ऐसी सस्कृतिका जिसके आधारमें सचाई, ईमानदारी, सतोष, संबर, प्रेम आदि आध्यात्मिक्र-तर्व काम कर रहे हो । रेल, तार रेडियोको सपारको इतनी आवश्यकता नही, जितनी सचाई, ईमानदारी, सबम और विश्व-प्रेमफ्ी । दोनोका होता सबसे अच्छा, परस्तु दोनो न हो तो सस्कृतिका होना सभ्यतासे अच्छा । सम्पता फो संस्कृतिकी रक्षाक्रे लिये छोडा जा सकता है, सस्कृतिको सभ्यताक्ी रक्षाके लिये नहीं छोटा जा सकता। आत्पाके लिये शरीर छूट सकता है, शरीरके लिये आत्मा कैसे छुठेगा ? सस्कृति किसी सण्क्त केन्द्रीय-विचारसे उत्पन्न होती है-- हमने देखा कि 'सभ्यदः तथा 'सस्कृति' में क्या भेद है। हमने यह भी देखा कि सस्कृति क्य! हुं * परन्तु 'संस्कृति' उत्पन्न कंसे होती है ? 'स्क्ृति' का उद्भव जातिके जोवनके किसी ऐसे सशक्त विचारसे होता




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