सिद्ध साहित्य | Siddha Sahitya

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Siddha Sahitya by धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डी के अआधार-सामग्री पिद्ध-ताहत्य” से हमारा तात्पर्य वज़यानी परम्परा के उन सिद्धाचार्यो साहित्य से हे जो झ्पभ्रेश दोहों तथा चर्यापदों _ रूप में उपलब्ध है और जिसमें बौद्ध तान्तरिक सिद्धान्तों को मान्यता दी गई है | यद्यपि: उन्हीं के सम- कालीन शैव नाथयोगियों को भी सिद्ध कहां जाता था किन्तु कतिपय कारणों हिन्दी तथा श्रन्य कई प्रांतीय माषाइा मे रेव योगियों के लिये “नाथ तथा बौद्ध तांत्रिकों के लिए दर शब्द प्रचलित हो गया । उसी प्रसंग में सिद्ध साहित्य” बौद्ध सिद्धाचायों के सा! या वाचक हो गया है । प्रस्तुत प्रसंग में भी 'सिंद्ध-साहित्य” से बट वात्पय त्रमीष्ट है | । को रचनाएं यप्रमुखतः दो रुप मं उपलब्ध हैं, दोहाकोष तथा चयापद । दोहाकोप दोहों से यक्त चतुष्पादयां को कड़वक शैली में मिलते डा कुछ दोहे टीकाओं में उद्धत हैं और कुछ दोहागीतियाँ बौद्ध तन्त्रों तथा साधनाओओं में मिली हैं । चर्यापद मीद्ध. तान्नरिक चयां के समय गाये जाने वाले पद हैं जो वामन्न ।सिंद्धाचार्यों द्वारा लिखे गये है किन्तु एक साथ संग्रहीत कर दिये गये हैं] दोहाकोष _ विभिन्न तिद्धों के कई दोहाकोष उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ पूर्ण हैं, ऊँ खाडत | उनका विवरण इस प्रकार हू; अ--काणहपा का दोहाकोप / डसेकी एक पांडलिपि सर्वप्रथम म० हरप्रसाद शास्री को नेपाल में मिली थी जिसका प्रतित्तिपि काल १०२७ जैपाली सम्बत्‌ (१६ ०७ ई०) था | इसके व है




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