राजपुताना का इतिहास भाग -2 जिल्द 5 ( बीकानेर राज्य का इतिहास ) | The History Of Rajputana Part-2 Vol. 5 ( History of Bikaner State )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे और आआतोत्सम के अभूतपूवे उदाइरख लोगों के सामने रक्‍खे हैं । जो नीति हमने राजपूताना के इतिहास की पिछली जिल्दों में रकखी है उसका बीकानेर राज्य के इतिहास में भी पालन किया गया है । कपोल- कल्पत श्रीर मन-गढ़न्त बातों को पूर्व नीति के झनुसार इतिहास! में समावेश स करने के नियम का निवोदद करते हुए हमने प्रमाणोक्त बातों को दी अहण फिया है और जहां से कोई वर्सुन लिया गया यथास्थान उसका उल्लेख कर दिया गया हैं। इतिहास के दोनों पदलुओं पर दृष्टि रखते हुए पक्त झौर पिपक्ष की बातों पर विचार कर युक्ति एव तके से जो बात माननीय ज्ञान पड़ी उसे दी हमने किया हैं छर जहां-जहां मत-भेद हुआ वहां हमने अपने विचार भी प्रकट कर दिये हैं । केवल एक पक्षीय मत पर विद्वान, सोग कलर विश्वास नहीं करते, अतप्व ऐसे कई बिवाद-श्रस्त विषयों को; ज़िनका झन्यत्र तो उल्लेख हे पर बद्दां की प्राचीन ख्यातों झादि में कुछ भी बुत नहीं है, दमको छोड़ देना पढ़ा है, क्योंकि हम उन्हें सन्देह-रहित सद्दीं कद्द सकते । प्रस्तुत पुस्तक के लिखने में इमने जिन-जिन साधनों का उपयोग किया है उनका विशद विवेचन प्रथम खंड की भूमिका में झा गया दे; इसलिए उसकी पुनरादृति करना श्नावश्यक है । परन्तु बीकाचेर राज्य की विस्तृत उ्यात, जो द्यालदास की ख्यात के ताम ले घसिद्ध है श्ौर *देशद्पैण” एवं “झार्य झाख्यान कर्पदुम” के स्चथिता दयालदास का यहां कुछ परिचय देना प्रासंगिक न होगा । झधिकांश प्राचीन रचनाओं में उनके लेखकों का कुछ न कुछ परिचय झवश्य मिलता है, किंतु द्यालदास से अपनी ज्यात के प्रारंभ झथवा झंत में कहीं भी झापना परिचय नहीं दिया है । इससे तो यही अनुमान होता है कि वह झपनी प्रसिद्धि का विशेष अभिलाषी न था । मारू चारण ज्ञाति की भादलिया शाखा की पक उप- शाखा सिंदायच है । ऐसी प्रसिद्धि है कि नरसिंह भादलिया को नाइड्राव पड़िहार ने कई सिंदों को मारने के पएवज़ में “लिंदढाइक” की उपाधि दी हट थी, जिसका झपश “सिंदायच” है । इसी चंश में बीकानरे राज्य के




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