लोक - परलोक | Lok Parlok

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Lok Parlok by श्री उदयशंकर भट्ट - Shri Uday Shankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अब का है, जैसे-तैसें जिन्दगी काठटती ই | “अरे होयगो गांधी, हां नायें चले काऊ गांधी फांदी की | गंगा मैया के सामने बड़े-बड़े सिर टेके हैं,” चौथे ने कहते हुए मुंह पर हाथ फेरा और जेब से सींक निकालकर दाँत कुरेदने लगा। इसी समय गंगा- तट से श्रंगोछ्ला पहने सारी देह में रज लपेटे, गंगाजली हाथ में लिये एक थुवक आकर रुका और पूछने लगप--- “का बात মহ, जि लोधेकौं का बकि रह्यौ हो, মল में तो आई के - লীলা दं माक सारे के, पर चलोई श्रायो, न जाने का बात हती ? चचा सुमसू कछु बात भई का ?” उसने पास बंठे एक बूढ़े से पूछा । लोगों में से एक ने बातें सुताई तो बोला--भस्म करि दंगो सारेन कू, समभि का रकखी है, बामत अबई इतने गये-बीते नायें |! उधरं से. एक ठाकुर श्राथा तो कहने लगा--“पभ्रे, গস ল कोई बामन है न ठाकुर, नायें तो याई गाम में मजाल है कोई सिर तो उठाय जातौ । खोदिक त गाढ़ि दयें जाते सारे ।” यह कहकर उसने मूलौ पर त्ताव दिया और पान वाले से पान के लिए कहा । - “पीछे के सब पैसा देड तबई पान मिलिगे, तुम समभो मैं कां तक उधार करूँ ?” “ग्रें दे दिंगे, क्यों मरे जाये, कितने हैं बोल 2 . “तुम जानो” “লা “बारह आना है गये हैं ।” ठाकुर ने ठठाकर श्रपनी शरम पर परदा डाज़ते हुए कहा--- “ती का भयौ, मरौ क्‍यों जाय है, लगा पान, दे दिगे। श्रवे, जाने नई है यहाँ पसो सालों की कभी परां नहीं करी । “पहले पैसा देंउ.ठाकुर, जि बात भूठी है, रोज तुम ऐसेई की देतौ।” “तू समझ हैं, तू नायेँ देगी तों श्लौर कोऊ नायें देगी ।* तो और सू ले लेउ, मैं गरीब श्रादमीऊं, कबतलक उधार करूँ, लोक-परलोक # # # है कक है




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