लोक - परलोक | Lok Parlok
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अब का है, जैसे-तैसें जिन्दगी काठटती ই |
“अरे होयगो गांधी, हां नायें चले काऊ गांधी फांदी की | गंगा
मैया के सामने बड़े-बड़े सिर टेके हैं,” चौथे ने कहते हुए मुंह पर हाथ
फेरा और जेब से सींक निकालकर दाँत कुरेदने लगा। इसी समय गंगा-
तट से श्रंगोछ्ला पहने सारी देह में रज लपेटे, गंगाजली हाथ में लिये एक
थुवक आकर रुका और पूछने लगप---
“का बात মহ, जि लोधेकौं का बकि रह्यौ हो, মল में तो आई के -
লীলা दं माक सारे के, पर चलोई श्रायो, न जाने का बात हती ? चचा
सुमसू कछु बात भई का ?” उसने पास बंठे एक बूढ़े से पूछा । लोगों
में से एक ने बातें सुताई तो बोला--भस्म करि दंगो सारेन कू,
समभि का रकखी है, बामत अबई इतने गये-बीते नायें |!
उधरं से. एक ठाकुर श्राथा तो कहने लगा--“पभ्रे, গস ল कोई
बामन है न ठाकुर, नायें तो याई गाम में मजाल है कोई सिर तो उठाय
जातौ । खोदिक त गाढ़ि दयें जाते सारे ।” यह कहकर उसने मूलौ पर
त्ताव दिया और पान वाले से पान के लिए कहा ।
- “पीछे के सब पैसा देड तबई पान मिलिगे, तुम समभो मैं कां तक
उधार करूँ ?”
“ग्रें दे दिंगे, क्यों मरे जाये, कितने हैं बोल 2 .
“तुम जानो”
“লা
“बारह आना है गये हैं ।”
ठाकुर ने ठठाकर श्रपनी शरम पर परदा डाज़ते हुए कहा---
“ती का भयौ, मरौ क्यों जाय है, लगा पान, दे दिगे। श्रवे, जाने
नई है यहाँ पसो सालों की कभी परां नहीं करी ।
“पहले पैसा देंउ.ठाकुर, जि बात भूठी है, रोज तुम ऐसेई की देतौ।”
“तू समझ हैं, तू नायेँ देगी तों श्लौर कोऊ नायें देगी ।*
तो और सू ले लेउ, मैं गरीब श्रादमीऊं, कबतलक उधार करूँ,
लोक-परलोक # # # है कक है
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