नया समाज | Naya Samaj

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Naya Samaj by उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे नया समाज फेलाकर ) संगीन काम करने को संगीन वक्त चाहिए. । रीटा--यानी १ चन्दू--चाय पीने को चार बजे का समय । प्रेम करने रीटा--प्रेम करने को £ चन्दू--ठद्दरो सोच लूँ; प्रेम करने को शाम का वक्त ! वैसे रात भी ठीक है ! करीचन करीबन” * * रीटा--करीबन-करीबन . जब भी मौका मिल जाय । ( दोनों ठद्दाका सारकर हँसते हें । ) तो मैं 'चलूँ चन्द्र ! वन्दू--( साथ ही उठकर ) ऐसी क्‍या जल्दी दे? बेठोन ! ( झावाज लगाता ) चाय वाय लो न । रीटा-ररददने दो चन्द्र, मैं घर पर पी लूँगी । ( उठने लगती है । ) 'चन्दू--( दरवाजे के पास जाकर आवाज लगाता हुआ 2) रूपा, रो रूपा के बच्चे, जाने कहाँ मर गया । मैं अभी झाया । ( पश्चिम के दरवाजे से लौटकर 9 चाय श्रा रही है । ( चन्दू, कॉउच के पीछे उसके कन्घे छूता हुआ झुककर 2 कितना प्यारा नाम है रीटा ! ( तुनककर ) इस घर में कोई झाराम नहीं है, नौकर एकदम पाजी । रीटा--क्यों, बाबा कहाँ हैं ? व्वन्दू--( उसी तरह ) बाहर धूप में बेंठे हुकका पी रहे दोंगे। ( सामने था जाता है । ) वे एक दम पुराने जमाने के श्रादमी हैं । खाना उन्हें चाँदी के बरतनों में चाहिए. । सामने रक्खा गिलास उठाकर नहीं पी सकते, भरने को एक श्रादमी , खाली बैठे पैर दबाने के लिए, नाईं या खबास । रीटा--तो बुरा कया दे ! व्वन्दू--बुरा १ श्ररे यह भी समझती हो कौनसा जमाना जा रहा हे । बाबा पैदल नहीं चल सकते । कहते हैं ताँगे पर बैठना कोई बैठना है;




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