सूर पंचरत्न | Sur Panchratan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
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मोहनवल्लभ पन्त - Mohanvallbh Pant
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लाला भगवानदीन - Lala Bhagawandin
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीकृष्णायनस:
अन्तदेशन
१-भक्ति-काव्य
संसार जटिल समस्याश्रों का श्रागार दे, दुःखसय कारागार हे | इस
जड़ जगत में सुख का नाम नहीं। घन, जन, सह्दाय्य, संपत्ति, पद-
मर्याद, विधा, यश, खव झूठे | इस संसार-मरूस्यल में समध्ष प्राणी
सुखप्रामरूपी सगठप्णा की खोज में भव्कते फिरते हैँ | सभी यथासाध्य
सुखोपाजन के प्रयास में लगे रइते है, लेकन सब्र प्रयक्षों का, सब साध-
नाश्नो का परिणाम देता क्या है, केवल द्ाह्मकार | विधाता की सृष्टि
दन्द्रमय है | एक ओर सुख है तो दृषठरी शरोर दुःख, एक श्रौर पुण्य हे तो
दूसरी ओर पाप, एक ओर स्वर्ग है तो दूसरी ओर नरक | इसी प्रकार
आदि-श्रत्त निन््दा-स्तुति, संपत्ति-विपत्ति, उन्नति-श्रवनति, सत्य-असस्य,
धर्म अधम, आदि विरोधी सावों में ही इस संसार की स्थिति हे श्रथवा
यों कहिये कि संसार इन दो विरोधी भावों की समध्टि है। दिन ओर रात की
तरह पर्याय से इनका यातायात लगा ही रहता है। इनमें से एक भाव मानव
द्वदय को प्रिय होता है तो दूसरा अप्रिय। परमात्मा ने यदि सब शुभ ही
হন बनाया होता तो अशुम का अस्तित्व कहाँ | बिना घुख का अनुभव
किये दु:ख, श्रथवा दुःख का अनुभव किये बिना सुख केशा दख कार
कितना मीठा होता है, इस बात का शान किंवा अद्युभव किी व्यक्ति को
तब तक अच्छी तरह नहीं हो उकता जब तक उठने नीम की कठुता का
अनुभव न किया हो | इस श्रपार संसार सागर में गोता लगाने से सुख-
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