चन्द्रप्रभ चरित | Chandraprabha Charit

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Chandraprabha Charit by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| 7 1 | ? | [.१४ | जिनका कि स्वरग॑वास शक संवंत्‌ १०३७ में हुआ था। एक वीरनन्दिका 'जिकर श्रवणबेल्गुलके ४७ वें शिलालेसमें है; परन्तु वे महेन्द्रकीर्ततिके पशिष्य थे । । महाकवि वीरनन्दिका केवर यही एक चन्द्रप्रभचरित उपलब्ध है । उन्होने इसके सिवाय ओर कोई मन्थ र्वा या नही, इसका पता नहीं । इस अन्थकी अन्‍्तप्रशस्तिसि और आचार्य नेमिचन्द्रने उन्हें जिन शाब्दो स्मरण करिया है उससे, मालूम होता है कि वे केवक कवि ही नहीं थे-अख़िल वाड्मय पर उनका अधिकार था, वे सभाओंमें बोलनेवाले अच्छे वक्ता थे और पिद्धान्तशासत्रोंके ज्ञाता भी थे । कविने अपने स्थानादिका उल्लेख कहीं भी नहीं किया । तो मी जान पड़ता है कि वे कर्णाठकप्रान्तके ही रहनेवाले होंगे । क्योंकि नेमिचन्द्र, चामुण्डराय आदि सब उसी प्रान्तमें हुए हैं । चन्दावाड़ी, बम्बई, | अेन्नकृष्ण १ सं० १९७२, नाथूराम प्रेमी । ही




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