सुयेनच्वांग | Suyenchavang
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
297
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
बाबू जगनमोहन वर्मा जी का जन्म सन् 1870 ई ० में हुआ। वे अपने माता पिता के इकलौती संतान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रतिष्ठित एवं शिक्षित परिवार में हुआ। वे बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। ये हिंदी शब्द सागर के भी संपादक थे। इन्होंने चीनी यात्री के भारत यात्रा के अनुवाद हिन्दी में किया। इनके पास एक चीनी शिष्य संस्कृति सीखने आया जिससे इन्होंने चीनी भाषा का ज्ञान अर्जित किया एवं उसके यात्रा वृतांत का अनुवाद किया। उनके इस कोशिश से हमें प्राचीन भारत के समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक को जानने में काफी मदद मिली।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ खुयेनच्वांग
सभी सदस्पोंने मान लो और सुयेनज्वांगका गाम बिना परीक्षा
दिये दी चोदद उने हण भिशषु्भोंको सीमे जिन्न लिए गया।
चुनाव हो जानेपर सुयेनच्वांगको उसके मरण पोषणका व्यय
राजकोशसे मिलने लगा और वद्द अपने भाई चांगचीके पास
छोयांगमें रहकर शास्त्रोंका अध्ययन करने लगा |
चिंगतू संघाराममें किंबर नामक एक प्रसिद्ध विद्वान मिक्षु
र्ता थां । उससे सुयेनच्धांग निर्वाणसुत्र ओर महायानके
अनेक प्रंथोका अध्ययन करता रहा। अध्ययन-कालमें वह इस
प्रकार विधाके अध्ययनमें दत्तचित्त था कि उसे न तो अपने
सानेकी सुध यी.न सोनेकी दिनरात भपनी पुस्तकको लिये पढा
करता था । डसकी प्रतिभा और धारणा शक्ति रेस थी कि जिल
पुस्तकके पाठकों वह एक बार सुनता था उसे भूलता न था
सौर दु्टरनेपर तो उसे धह कंटाप्रही ष्टो जाताथा) उसे
अध्ययन करते थोड़े दो दिन बोते थे ओर केवछ तेरदह दोदह
वर्षकी अवस्था थो कि एक बार संघमें अनेक भिक्षओंने किसी
स॒त्रकी व्याख्या करनेके लिये आग्रह कियां। बालक सुयेन
च्वांग उनकी बालको न रार सका भौर उपदैशक्षे आसनपर
जा बैठा और उस सूत्रकी ऐसी मनोहर व्याख्या की और सूक्ष्म
(सा्धोंका उद्धाटन किया कि श्रोतागण उसे खुनकर दंग रह गये
मीर सबके मुंहसे साथु साधु निकलने लगा। खारे लोयांग
:परदेशमें घर घर उसकी प्रशंसा द्वोने लगी और दूर दरस लोग
«उस होनहार वालकको देखनेफे लिये दौड़ दौड़कर थाने लगे |
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