विज्ञान | Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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পক ¢ विज्ञान | भाग ११ ১০১০০০৯১০৮০ म १३७ £ यह खिन्न ऐसा उत्तम बना था कि माढव्यने हो, पहिनाये जायें और छातीपर कोमक्ष कमलक्री इसे देखते ही इसमें शकुन्तल्लाके रूपका पहिचान लिया । पर यह चित्र श्रमी एण नहीं हुआ था। . इसके पीछेकी ज़मीन खाली ही छोड़ दी गई थीं । दृष्ग्रद्त अब इसमें रंग भरनेके . लिये उद्यत हुए । चतुरिकाको रंग, कूची इत्यादि लानेके लिये देश देकर वह अपने खित्र मसाढ्व्यसे कहते हैं “अयताम काय्पा सकेतलीनहएमिथना झोतोवहा माशिनी फदास्तामभिते नि्षणणह़रिणा । मोरीगुरोः पावनाः ॥ सध ल्मलम्निततवकलप्य च तरो) निमातुमिच्छु स्यश्च शङ्गे कृष्ण सतस्य वामनयनं | क्रर्हूयमानं षगीम्‌ | अथ४-- खुना, मित्र, में चाहता.हूं कि इस चित्रमे माकहिती नदी बनाई जाय.। उसके किनारे पर रेतीमे दंसोके जोड़े छुगलें दिखायो वे। आगे ब्रढ़कर हिमालय पर्वत की तराई चित्रित की जाय | उलमे।एक शोर हरिनो के रूणड चरते हो ओर दूसरी ओर एक घुत्चकी डालियोपर छातके बस्यः घपमे सुखानेके। डाले गये हो और उस चुत-पेध्नीचे पक्र हरिणी खडी श्रपनी बाहड शल को धीरे धीरे कृष्ण मृगक सोंगासे खुज्ञा रही हो. |” इतना ही नहीं, घरन महाराज शकुन्तल्वाको कुछ आभवषण भी पहिनाना चाहते है! -- कृतं नकंणपितरन्धनं ससे वि शिसीषमागण्ड चिल्लम्बि केशर । « ने. वा शबनद्रमरी चिकोमर्ल मसेणाससत्र रखित झातान्तरे ॥ अर्थात्‌ उनकी: यह इच्छा है कि प्यारी शकन्तल्लाफे कानोम शिरीपके ' कएफल' जिसके पुष्पोकी चरम पखु डियाँ उसके. कपोलोपर कदकती | _ बाले ही इस विशिन्न नशेके मदसे मतबलि हो | सकते रद) मतवाले होनेपर ही उनके हृद्य्मे नान कलियोक्रा हार भी बनाया जाय। भला हन घासीक बातौक्ा दुष्यन्त पसे प्रेमी फे सिवा शरीर कोन दरसरा सक्ता था? यष्ट साधारण चित्रकार की शक्तिके नितान्‍्त धांहर था।. सभी लोग इस सांदर्य्य जन्य प्रेमके रशेका স্কান্ত-. भव नहीं कर सकते । दुष्पन्तकी भाँति प्रेमी हृद्य- धकरारके . उत्तमोत्तम भाषोका आविर्भाव हो सकता हे।' जब तक ऐसे भाव हृदयमे नहीं उत्पन्न होते तबतक भावपूर्ण कविताकी भाँति भावपूएं चित्रीका भी बनना कठिन हो नहीं वरन्‌ श्रसम्भव हो जन्तादहे। बिना इस सॉंदय्यजन्य प्रेमिका खरे, काई सब्चा कलावबान नददों हो सकता। इस नशेमे और दूसरे नशोमे बड़ाही घोर श्रन्तर है। ओर नशे हर से उतर जाते है, पर यह किसी डर- से भी नहीं उत्तरता | ओर नशामे नींद ञआ जाती ইহ হী লা एकाइम भाग जाती है। और नशे कुछ कालके बाद उतर जाते हैं पर यह नशा कभी डउतसना जानता ही नहीं | यही फारण है कि सच्चे कवि तथा चित्रकार इत्यादि अपने कार्य में पूर्णतया लीन हो आते है | उन्हें सुख, दुख, गरमी, सरदी, मान, शपमान, तथा श्रन्य संसारिक प्रपञ्चा क्षे परवाह नहीं रह्‌ जपती । उनके मस्तिष्कमे श्रपने काय्येकी दी घुत समाई रहती है दुष्यन्त इसी नशेमं भूम रहे थे कि भादण्यने चित्रमे एक ओर भी निणुणता देख उनसे पूछा--“ मित्र | रानी चकित सी होकर पंकज रूपी हथेलीसे श्रपने ओ्रोठोंका क्‍यों छिपाये है ? (ध्यान पंक निरीक्षण कर) श्रो मे समभा गथा पक भौश उनके मुखङ्ेा कमल जान उसप्ररचैटा आहइता है |? महाराज अपने घनमें थेद्दी।| यह सुनते ही कि पक भोरा शकुन्तलाके भुखका कमल जान उसपर बेठा चाहता है, उन्‍हें तत्काल कयष ऋषिके साभमर्भ




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