काश्मीर यात्रा | Kashmir Yatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ ` काश्मीर यात्रा हम उनके पहनावे से यह नहीं भाँप सके कि इनमें कौन हिन्दू है श्रौर कौन मुसलमान | कमीज की तरह वे एक लम्बा चोला भी पहनती हें जिसे यहाँ के लोग 'फरन' कहते हैं। मेरे इतिहासज्ञ मित्र ने बताया कि इस पोशाक को जबरन यहां की श्रौरतों को पहनाया गया है, इनका सौन्दयं श्रप्सराश्रो को भी मात कर देता है, इसीलिए यहाँ पुरुषों की दृष्टि से बचाने के लिए झ्रौरतों को फरन पहनाते हैं। जो भी हो, पर जादू वह है--जो सर पर चढ़कर बोलता है । प्रकृति की देन छिपाये नहीं छिपती । जम्मू शहर देखकर हमें बड़ी निराशा हुई। यहाँ झाने के पहले इसके बारे में बहुत कुछ सुन रखा था, पर शहर देखकर ऐसा लगा जेसे इसे হাহ कहना भी शहर शब्द का मजाक उड़ाना है। आधे वर्ग मील में फंला हुआ अश्वल, जिसे एक बड़ा कस्बा मान लेना काफी है। कहा जाता है कि जम्मू की यह रौनक आजादी के बाद बढ़ी है। कुछ वर्षों पहले जहाँ स्यापा था, भ्राज वहीं होटल भ्रौर रेस्तराँ खुल गये हे । . य त्रियो के लगा- तार आवागमन के कारण जम्मू निवासियों का सितारा बुलन्द हो गया है | कादमीर राज्य का ` भारत के सबसे निकटवर्ती स्थान होने के कारण आज' वह व्यापारिक केन्द्र बन गया दै । | प्राचीनकाल में इसकी क्‍या हालत थो, कौन जाने। इतिहास के ग्रष्ययन से इतना ही ज्ञात होता है कि जम्बुलोचन नामक किसी राजा ने इस शहर को बसाया था । लेकिन राजा जम्बुलोचन के पुवं अग्निगभं नामक एकं बहे प्रतापी राजा हो चुके हैं जिनका जम्मू पर अधिकार धा। वह जम्मू कौन सा राज्य था, पता नहीं | मुमकिन है, आगे चलकर जेब राजा जम्बुलोचन के अधिकार में यंह प्रदेश श्राया हो तबे उन्होंने इस




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