शिक्षा मनोविज्ञान | Shiksha Manovigyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
347
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ शिक्षा-मनोविज्ञान
दी तो कहीं शिक्षा का मूल-मंत्र नहीं है ? ये दो बातें “इन्द्रिय-
यथार्थवादः ( 86156 1262178 ) की निचोड़ थी, अर इन्दीं
दोनो का विकास होते-होते आज शिक्षा-विज्ञान इतनी उन्नति तक
पहुँचा है। इसमें संदेह नहीं कि 'शिक्षा-मनोविज्ञानः का आरंभ
“इन्द्रिय यथार्थवाद! के साथ ही समझना चाहिए, परंतु अभी
सत्रहवौ शताब्दी में जब मनोविज्ञान”! की ही बहुत साधारण
अवस्था थी, 'शिक्षा-मनोविज्ञान! की उन्नत अवस्था तो कहाँ हो
सकती थी । इन “इन्द्रिय यथाथवादिर्योः मे मुख्य बेकन (१५६६
१६२६) तथा कोमेनियस ( १५६२-६९७० ) माने जाते है ।
जैसा अभी कहा गया है, “इन्द्रिय यथा्थंवाद' ने शिक्षा के
क्षेत्र में उथल-पुथल मचा दी। अब तक अध्यापक के लिये मिन्न-
भिन्न विषयों का अगाध पंडित होना काफ़ी समझा जाता था।
वह लेटिन का पंडित हो, ग्रीक का विद्धान् हो, गणित मेँ पारंगत
हो, भूगोल का आचाये हो, बस, काफ्ती थी। अब तक शिक्षा का
मैदान 'शिक्षक” के ही हाथ में था, उसमें बालक? को कोई न
पूछता था। यह नहीं समझा जाता था कि अगर 'शिक्षकः विद्वान
तो हे, परंतु बालकः की प्रकृति से, उसकी मानसिक रचना से
परिचित नहीं है, तब भी वह उत्तम शिक्षक का काम कर सकेगा
या नहीं ? “इन्द्रिय यथारथवादः ने जहाँ और बहुत-कुछ किया, वहाँ
बालकों के मनोविज्ञान की तरफ़ भी शिक्षा-विज्ञानियों का ध्यान
आकर्षित किया। 'इन्द्रिय-यथाथंवाद ने शिक्षा के ज्षेत्र में प्रवेश करके
पासा ही पलट दिया, रिक्षा के संपूर्ण प्रभ॑ को दूसरा ही रूप दे
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