समग्र ग्राम - सेवा की और | Samgra Gram Seva Ki Aur
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिंदावलोकन 1१६
नर अमय-आशभ्रम, बलरामपुर
षृ ६.५.१५४
प्रिय आशा बहन,
१५ साऊू वीत गये। सन् ?४२ के जेल-प्रवास से आम-सेवा की
आखिरी कद्दानी लिख भेजी थी । पिछले १५ साल में देश और दुनिया
में इतने अधिक परिवर्तन हो गये कि ऐसा लगता है, मानो सैकड़ों वर्ष
बीत गये | देश आजाद हुआ। लोगों ने बडी धूमधाम से आजादी की
खुशियाँ मनायीं | फिर कुछ दिन इसी खुशी से मस्त रहे | उसके याद
लोग एक-दूसरे की शिकायत करने लगे, ऊँसे किसी हारी हुईं थीम के
खिलाड़ी किया करते ह।
देखते-देखते भारत के आसपास कै देशों में भी आजादी की लद्धर
उठी । सारी एशिया में नव-जीवन की नव-चेतना का संचार हुआ और
चारों तरफ रष्ट्र-निर्माण की योजनाओं की धूम मची |
एशिया से यह घूम आज भी मची हुई है।
नवचैतना शशिया के देशों की आजादी से परिचमी देशों
के लिए झोषण का अवसर घय्ता चला गया | फल:
स्वरुप उनकी जीवन-संघर्प की समस्या उठ खड़ी हुईं 1 इससे इन देशो की
आपसी कशमकश बढ़ी । युद्ध तो सम्रात्ष हुआ, पर इस कशमकश ने
शान्ति ख्ापित नहीं होने दी | युद्ध के दिनों में जो राष्ट्र मित्र-राष्ट्र थे, वे ही
एकनदूसरे के साथ होड़ करने लगे | फिर भी उबको शान्ति की चाह थी |
वह इसलिए नहीं कि बे दझान्तिवादी या झान्ति-प्रिय हो गये थे, बल्कि
इसलिए कि युद्ध की समाप्ति इतिहास की एक विशिष्ट घथ्ना ठे हुई ।
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