समग्र ग्राम सेवा की ओर | Samagra Gram Sewa Ki Or

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Samagra Gram Sewa Ki Or by धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` ( १५ ) भलमनदयो-दवारा उपेक्ता; उन दीनो के इदय का श्रमृत; - दरिद्रता की चक्की उनकी मानवता को पौसने में . असमथ है ] ३, कौन सभ्य, कोन श्चसभ्य ! ... ४३-४७ [ इन शहरियों से वे अधिक संस्कृत ई; वनमानुषोँ के विषय में; भारत की भ्रेष्ठ संस्कृति ] १०० वनमानुप भोर चमार ... ... ४८-१३ [ वनमानुपों के विषय में और वातें; चमारों की जड़ स्थिति ] १$ चम्तारों की हालत ष .., ५३-६३ [ परमुखापेक्षी जीवन: गुलामों की भाँति बेंटवारा; गन्दगी का कारणः मूल समस्याः वच्चों से परिचयः स्त्रियों से परिचय; छियों का पड हास्य; भलमनई ही पाप के वीज নী हैं ] १२» गाँव के बच्चे ॥ बह ,.. ६२-६८ १३ गाँवों में पंचायत नि ,,. १६-७६ [ एक आँखों देखी पंचायत; कचहरियों का भद्दा अनुकरण सरकारी पंचायत: “ये भी क्या पंचायते हैं ?? ] १४. समस्या की जड़ ৪ ... ७६-८२ [ सव॑ बुराइयों की जड़ उनकी गरीबी है; यह वेहोशी आशिक सुधार की आवश्यकता; स्वयं हैजे के चंगुल में ] 4९५ दूसरी समस्याएं ... ८२-९३ [ ददै की खेती बिना चरला पंगु है; खेती के लिए बिनोले का प्रचार; चरित्रहीन के घर में; नारी का वही सनातन मातृत्व ] ह १६, देश-अ्रमण की कहानी ... ट ३-१ ०७ [ यात्रा की आकस्मिक घोषणा; प्रयाग में; दक्षिण की ओर गुजरात का अनुभव; भाबुवा के अनुभव; व्यवहार में सहसा




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