समग्र ग्राम - सेवा की और | Samgra Gram Seva Ki Aur

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Samgra Gram Seva Ki Aur by धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिंदावलोकन 1१६ नर अमय-आशभ्रम, बलरामपुर षृ ६.५.१५४ प्रिय आशा बहन, १५ साऊू वीत गये। सन्‌ ?४२ के जेल-प्रवास से आम-सेवा की आखिरी कद्दानी लिख भेजी थी । पिछले १५ साल में देश और दुनिया में इतने अधिक परिवर्तन हो गये कि ऐसा लगता है, मानो सैकड़ों वर्ष बीत गये | देश आजाद हुआ। लोगों ने बडी धूमधाम से आजादी की खुशियाँ मनायीं | फिर कुछ दिन इसी खुशी से मस्त रहे | उसके याद लोग एक-दूसरे की शिकायत करने लगे, ऊँसे किसी हारी हुईं थीम के खिलाड़ी किया करते ह। देखते-देखते भारत के आसपास कै देशों में भी आजादी की लद्धर उठी । सारी एशिया में नव-जीवन की नव-चेतना का संचार हुआ और चारों तरफ रष्ट्र-निर्माण की योजनाओं की धूम मची | एशिया से यह घूम आज भी मची हुई है। नवचैतना शशिया के देशों की आजादी से परिचमी देशों के लिए झोषण का अवसर घय्ता चला गया | फल: स्वरुप उनकी जीवन-संघर्प की समस्या उठ खड़ी हुईं 1 इससे इन देशो की आपसी कशमकश बढ़ी । युद्ध तो सम्रात्ष हुआ, पर इस कशमकश ने शान्ति ख्ापित नहीं होने दी | युद्ध के दिनों में जो राष्ट्र मित्र-राष्ट्र थे, वे ही एकनदूसरे के साथ होड़ करने लगे | फिर भी उबको शान्ति की चाह थी | वह इसलिए नहीं कि बे दझान्तिवादी या झान्ति-प्रिय हो गये थे, बल्कि इसलिए कि युद्ध की समाप्ति इतिहास की एक विशिष्ट घथ्ना ठे हुई ।




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