जैन ज्योतिष | Jainjyotish

Jainjyotish  by शंकर पंढ़रीनाथ - Shankar Pandrinath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) जिगर ध्मका मूर हाथ शात नही. कहा मी ह~ ५ मिथ्यालादि- मी यदि मनो व्चेषि शधदः ॥ पौतः कि बहुश्नोषि शुद्धयति पुरापुर.पपृ्ों घट ॥ मिवा महिन हवा জনে অন बिगर शद्ध हेषा नदीं जेते मयते मरा हवा ঘতা পারে নার থা शद्ध नस्ते धोनेपर भी वह शुद्ध नहीं हो नाता उसके अंदरका सभी मद बाहर गिरा देनेसे ही शुद्ध ढोगा वैसा ही तीन मुदता णष्ट मद रहित सम्पक्् दोनैसे सत्यार्य धर्मका मार्ग मिलता है. इससे सबसे पहडे मिथ्यालका त्याग करना चाहिये तमी सत्माभे मैवागमपर भपनी श्रद्धा छगती है । प्रकाश्षक:




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-11-28 15:46:37
    Rated : 5 out of 10 stars.
    Category of the book should be Jyotish
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