जैन तंत्र -शास्त्र | Jain Tantra Shastra

Jain Tantra Shastra by यतीन्द्र कुमार जैन - Ytindra kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२२ श्री नेमिनाथ शख २३. श्री पा्वनाथ से २४ श्री महावीर सिंह उपत तीर्थकरो में से जिनके भी मन्त्र-यन्त्र का साधन करना हो, उनको मूर्ति की बैठक पर तदनुरूप अवश्य होना चाहिए, तभी सूति साधक होगी । किस मन्त्र को साधना में किस तोर्थकर की सूर्ति को स्थापना भावश्यक है, यह प्रत्येक मन्त्र के शोर्षक पर उल्लिखित है । मन्त्र-साधना के समय एक लक्षडी को चौकी पर रेशमी वस्त्र बिछाकर, उसके ऊपर यन्त्र रखना चाहिए। प्रत्येक यन्त्र का स्वरूप मन्त्र के साथ ही दिया गया है । यन्त्र को स्वर्ण, चाँदी अथवा तांबि के पत्र पर खुदवा लेना चाहिए । यन्त्र को स्थापित करने के बाद उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करनी चाहिए । प्राण-प्रतिष्ठा को विधि इस प्रकरण के अन्त में दी गई है । प्रत्येक मन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा उसी विधि से करनी चाहिए प्राण-प्रतिष्ठित यन्त्र के ऊपर मन्त्र से सम्बन्धित तीर्थंकर को सूरति स्थापित कर उसकी पुष्प-धूप-दीप आदि से अर्चना करें, तदुपरान्त निश्चित संख्या में मन्त्र का जप आरम्भ करे । प्रत्येक मन्त्र-जप के बाद एक-एक पुष्प मूति के समीप रखते जाना चाहिए । पुष्प गुलाब, वेल!, चमेलों आदि के सुगन्धित त्तथा पवित्र होने चाहिए ! मन्त्र के सिद्ध हो जाने पर आवश्यकतानुसार उसका प्रयोग करना चाहिए। प्रयोग-विधि आदि का प्रत्येफ मन्त्र के साथ उल्लेख किया गया है । * १. श्री ऋषभनाथ तीर्थकर अनाहत राजा वशीकरण मम्त्र-यन्न् निम्नलिखित मन्त्र श्री ऋपभनाथ तीर्थंकर का अनाहत मन्त्र हैं। कु दाग से राजदरबार में राजा अथवा राज्याधिका रियो का वशीकरण ता है 1 मन्त्र पमो जिणाणं च, मो ओहि जिगाण॑ च, णसो परमोहि जिणाणं । णमो सब्बोहि जिशाणं । 3 णमो अणंतोहि जिणाणं । 5 चूघ- भस्स भगवदों बुपभ स्वामि, धत्त वियराणि अरिहंताण विज्साणं महा विज्साणं मणमिप्पदेयिदकम्मियाणि जम्मिरकेशविस के अनाहत विद्यार्य स्वाहा 7 साघन-विधि--सर्वप्रथम आगे प्रदर्शित चित्र (संध्या १) यन्त्र की किसो स्वर्ण अयवा चांदी के पर खुदवा लें-।




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