अवेस्ता | Awesta

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Awesta by राजाराम जी -Rajaram Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपोद्धात १५ অত অনুজ अ, ( क्षाचित्क ओ) 1 २६-- अवेस्ता का अ जोर्थेका दीधे रूपहे, बह गा० अबे० में य० अचे० के ्,अ ओर कमी ओ,ओं के स्थान प्रयुक्त होनाहि । गा० अवे० अज्ञम्‌ । य० अवे० अर्जम्‌ =सं० अहम्‌ 1 गा० अवे अमरवंतेम =य० अवे अमरवतेम = सं अमवन्तम ( बल वाले को }) 1 गा० अद्या =य = अह्या=सं० अस्माकम्‌ । गा० अचै० यन्य० अवे०° यों यस्‌ (जो) | गा० अवे० नय अवे०~नो~मं० नस्‌ । गा० स्तरम= य० स्तरेम्‌ (तारे জ্বী) | गा० दमनय० हंम्‌=सं° सम । गा० हर य० हर = सं° स्वर्‌ ( स्वग )1 २७-य० अवे० में अ (क) कहीं ब्‌ से पु्वेबर्ती अन्‌, अहू और आ के स्थान प्रयुक्त हुआ है । और ( ख ) कहीं बिना किसी नियम के प्रयुक्त हुआ है जो गा० की अनुकृतिमात्र प्रतीत होता है। (क ) द्रओमब्यो । अवबिद्ञ (सहायताओं के साथ) | हएनब्यो (सेनाओं से) । (सत्र) य० गा० अबे० स्पनिइत (पविन्नतम )। अमषु स्पंत ( अमत्ये पवित्र )। य० अबे० यज़त और यज़लें। (ग) कहीं सन्धिसे मी हुआ है । य° अवे° फररेनभोत्‌ ( फ्रक़नओतू ) ( उस ने अपण किया ) । अबे० एं. २८--अवे० पे साधारणत: संस्क्रत के उस अ, आ के स्थान प्रयुक्त होता दै जो यू से परे है और जिस से परला अक्षर इ, ई, ए, ए वा य्‌ वाला है। सं० रोचयति ( चमकाता है )=य० अत्रे° रओचयेदति । सं० क्षयसि (तू शासन करता हैं )-गा० अवे० स्पयेदी । सं° अयानि ( मै जाऊ ) य० अघे अयेनिनगा० अवे० अयनी । सं० यज्ञे=य० अवे० यैस्ने=गा०अवे० येके । सं० यस्याः ( जिस का खरौ लिङ्क )=्य० अवे० येङ्टा । सं० यस्य ( जिस का पुणो गा० अवे० यद्या । २९--अवे० मे पदान्त पं सं० एके स्थान आताहै। सं° अवसे ( रक्ता के लिप )=अवे० अवङ्है । सं° यजते ( यज्ञन करना है ) = य० अवे० यज़इते | ३०--सं० य हसित हो कर अवेऽ मेदो जाता है| सं० कस्य (किस का) गा० अवे० कह्याल्यय ० अवे० कहे |




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