जीवन के दाने | Jiivan Ke Daane

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Jiivan Ke Daane by रांगेय राघव - Rangaiya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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১ ২৬/ ष ৬২৬ क करीम न हसकर कहा-आप भी कसी बात करत हो? ॐ ৬ भश ৬১ ৬$ जःनतष्टो रातकोकेसी नशीलीहवामे सोना पडतादहे हमे? ओर भइया यह तो इस पेड़ की आदत हे। जहाँ बोओगे वहां जड़ फलायेगा। कोई नहीं रोक सकता। ६ € सॐ न 9 ॐ दू १.५ नहीं केसे रोक सकता । इसे भें कटवा दूँगा। 'पंडितजी न विक्तुब्ध होकर कहा । तुम, करीम ने विस्मय से पूछा-पंडित होकर पेड़ कटवा दोग ? धरम वरम सब छोड़ दांग ! “ घमे,' पंडितजी न आसन बदल कर कहा -धमे का नाम ৬১. ২ জী , ৬১ ৬২৬ (৯১ न लेना करीम ! मेरी बच्ची का खून हे इसके सिर पर। इस पर हत्या का दोष है। जान कितनों के बच्चे अभी ओर काटेगा ? ओर कमबख्त का होसला देखो | अब इसका जाल इतना फेल गया है कि हमारे ही घर को ढह्दा देना चाहता है | मरे बाद तुम्हारी ही बारी है करीम .........! करीम ने हथ उठा कर कहा-'अल्लाह रहम कर | पंडितजी कहीं के न रहेगे | इस कटाना ही पड़ेगा ।! पंडितजी को कुछ संतोष हुआ | मन की जलन पर कुछ शीतल लेप हुआ । तव एक आदमी तो साथ है । पुरखे तभी तक अच्छे हैं जब तक पितर हैं, पानी दं दिया, लकर चले गये यह कया कि अपने ही बच्चा पर भूत बन कर सवार ओर रोज़ रोज़ गंगा नहाने के खर्च की धमकी दे रहे हैं। अरे अगर जिदा ही नहीं खावेग तो इन कमवझूतों को कान चरायेगा ? ० < ० (~ চি पंडितजी उठ पड़। घर आकर पंडितानी से कहा। ( आठ




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