पंचपात्र | Panchpatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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मामा वरेरकर - Mama Varerakar
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रामचंद्र रघुनाथ - Ramchandra Raghunath
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हैसन्त
कृष्णु :
केदार `
ऊँष्णु '
हेमन्त `
केष्ण :
हेमन्त
पुनश्च गोङ्कुलम्
नष न्
: इधर आकर बैठ जाओ न रन्त ्वंतक खड़े
रहोगे १
अच्छा, अच्छा | (बैठते है ।) इसी तरह बैठता था में
अपने साथियों के साथ | तुम्हारे जेसे ही थे वै--बडे
स्नेही, वडे श्रद्धालु अर बडे संशयालु--तुम्हारे
सराखे--परन्तु तुम्हारे समान बडे नहीं थे | हम सब
बालक-ही-बालक थे | बडा मजा लुटते थे | उस
वक्त हमने खूब चोरिया की--दूध, दही और माखन
की बडी नटखट थी उस वक्त की ग्वालनें
और आज की क्या कम हैं? वे भी नटखट ही हैं।
पर अब हम चोरी-वोरी नहीं करते |
(गहरी सास भरकर) गये वे दिन ! तुम क्या चोरियों'
करोगे ? नामद हो गई है आज की पीढ़ी | उस वक्त
सारे वाले ओर गालिनें हम बालकों से थर-थर
कोते थे | खुशी से हमें दूध, दही अर माखन
देते थे | पर चोरी के माल में जो मजा है उसका
क्या कहना ? वाह ! (आँख मूँदकर धीरे से हँसते हैं ।)
(अपने दोनो साथियो से) देखो-देखो | केसी आँखें
मूदकर वैठे है जेते चोर-विलाव हो | मेरा ख्याल ই
कि आज भी यह चोरी करने से बाज न आयेंगे |
(फिर एक गहरी सास छोडकर आँखे खोलते है।) गए
वे दिन और उन चोरियों का आनन्द भी चला
गया । कोन जाने, शायद वै वालिनं मी चली गह
हो!
कोन-कोन थीं वे ?
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