चाय का रंग | Chay Ka Rang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चाय कारंग ६ “जी, হাঁ | “तो क्या में यह समझ लू' कि क्या आप दो वर्ष बाद इस चादर की रजत जायन्ती मनायेगे ९ किये उस दिन अपने सब दोस्तों को चाय के लिये तो बुलायेंगे न १” हम देर तक हंसते रहे। मैंने कहा--/इन्सान भी ताश के पत्तों की तरह हमेशा बँटते रहते हैं, पर जब कभी दो जाने- पहचाने पत्ते समीप आ जाते हैं. तो चाय की प्यालियां आप से आप समीप सरक आती हें ॥ वह बोला--मैं ताश का पत्ता ही सही। वाश के पत्ते को चाय की प्याली और अण्डी की चादर से प्रेम हो गमया आसाम से चलते समय मैं कया जानता थ्य कि यहाँ आप से भेंट हो जायगी । नहीं तो में अर्डी की एक चादर आपके लिए ले आता। 'हाँ, अपने बगीचे की चाय का एक आध पैकट तो जरूर दे सकता हूँ ।” “उसके लिये पहले से धन्यवाद । हाँ तो आज से अठारह बे पूर्व मुझे आपके घर पर आतिथ्य प्राप्त हुआ था। वह भी उसी कमरे में जहाँ कभी भारत के सबसे बड़े महापुरुष को ठहराया गया था 1? क्‍ वह जरा संभला--/डस कमरे को आत्मकथा लिखने का अवसर ' मिले तो उसमें बहुत से चेहरे उमरेंगे। उनमें ऐसे लोग भी होंगे जिन्हें चाय से घृणा थी, और ऐसे भी जो सौ काम छोड़कर चाय की प्याली में ही तूफान उठाने को अपने जीवन का सबसे बड़ा आदश मानते थे |”? ... मैंने कहा--आप आत्मकथा लिखें तो उस कमरे की आत्म- कथा आप से आप आजायेगी।?..... उसकी आँखें चमक उठी । अटारह वर्ष पूर्व जब में उसके घर पर ठहरा था तो उसे यह आशा न थी कि मैं अपने संस्मरणों




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