शिवानी का आशीर्वाद | Shivani Ka Aashirvad

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Book Image : शिवानी का आशीर्वाद  - Shivani Ka Aashirvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विठोजी को भी সী भाई की बात सुनकर तथा ভউনল্সী अमित प्रसन्नता पर बड़ा ही आश्रय था। उन्होंने सोचा कि आजकल मइया बहुत सोचते है सोचते-सोचते ही वे इस अवस्था तक श्रा गये | उन्होने ससम्मान कहा-- “आपको भ्रम हो गया है। चलिये सोइये । मेँ पहरा देता हं।” विठोजी ने डंडा सँमाला । “नहीं নিভী, मुभे भ्रम नहीं ই, गै सत्य कहता ह--बिल्छुल सत्य कहता हूँ। मैंने माता के दर्शन किये है। आज मेरा जन्म सफल हुमा । मैं कितना माग्यशाली हं !” मालोजी आत्मविभोर ये | विठोजी कुछ न बोले चुपचाप घूमने लगे। कुछ समय के बाद उन्होंने चुपके से माल्लोजी के पास आकर देखा । वह गहरी निद्रा में सो रहे थे। ঈ चुपचाप आगे बढ़ गये करीब दो षण्य ओर बीता । चन्द्रमा सिर पर त्रा गया । विठोजी थककर अपने भाई के पैर की ओर जमीन पर बैठ' गये । उन्होंने भइया को जगाना ठीक नहीं समकऋा। अचानक मालोजी पुनः उठ बैंठे और “विठो ...विठो” चिन्नाने लगे । यत्रपि विठोजी उनके पास ही थे ओर प्रत्येक पुकार पर बोल मी रहे ये, फिर भी वे तीन-चार बार लगातार जोर-जोर से पुकारते गये । शन्तं म उन्दोने विठोजी के कन्धो को हिलाते हुए कहा, “बिठो ! मेरे प्यारे विठो ! स्वम में मी मवानी मुभसे मिली थी । कैसा भव्य खखूप था.। गौर वणं, बड़ी-बड़ी श्रोखि, मस्तक पर कुंकुम, शरीर पर सुन्दर अरुण वस्त्र, स्वणं मुक्ता तथा विविध रल्ञ-जटित अलंकार ।> माललोजी की श्रं भर आयीं वे भ ते ही गये, “उन्होने मुझसे कहा है कि में तेरे ऊपर प्रसन्न हूँ । त्‌ शक्ति शाली हणा । ठ संपक्ति मिलेगी | ठम्हारे बेटे का उसी से विवाह होगा, जिससे _ ठमने सोचा है । तू उसी चीटी के बिल्न को खोद। भीतर एक साँप रहता है । वह मेरा ही स्वरूप है । ठम उसे नमस्कार करना वह हट जायेगा । यह सम्पत्ति तथा सम्मान तेरे सत्रह पदी तक र्देगा । इतना कह देवी चली गयी ` मालोजी की बातों क्षाः विश्वास विठोजी को नहीं हुआ। वे चुपचाप बात पुनते रहे | अ्रन्त में दोनों माई उठे और उस चीटीं के बिल की ओर गये ॥




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