शिवानी का आशीर्वाद | Shivani Ka Aashirvad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विठोजी को भी সী भाई की बात सुनकर तथा ভউনল্সী अमित प्रसन्नता
पर बड़ा ही आश्रय था। उन्होंने सोचा कि आजकल मइया बहुत सोचते है
सोचते-सोचते ही वे इस अवस्था तक श्रा गये | उन्होने ससम्मान कहा--
“आपको भ्रम हो गया है। चलिये सोइये । मेँ पहरा देता हं।” विठोजी ने
डंडा सँमाला ।
“नहीं নিভী, मुभे भ्रम नहीं ই, गै सत्य कहता ह--बिल्छुल सत्य कहता
हूँ। मैंने माता के दर्शन किये है। आज मेरा जन्म सफल हुमा । मैं कितना
माग्यशाली हं !” मालोजी आत्मविभोर ये |
विठोजी कुछ न बोले चुपचाप घूमने लगे। कुछ समय के बाद उन्होंने
चुपके से माल्लोजी के पास आकर देखा । वह गहरी निद्रा में सो रहे थे। ঈ
चुपचाप आगे बढ़ गये करीब दो षण्य ओर बीता । चन्द्रमा सिर पर त्रा
गया । विठोजी थककर अपने भाई के पैर की ओर जमीन पर बैठ' गये । उन्होंने
भइया को जगाना ठीक नहीं समकऋा। अचानक मालोजी पुनः उठ बैंठे और
“विठो ...विठो” चिन्नाने लगे । यत्रपि विठोजी उनके पास ही थे ओर प्रत्येक
पुकार पर बोल मी रहे ये, फिर भी वे तीन-चार बार लगातार जोर-जोर से पुकारते
गये । शन्तं म उन्दोने विठोजी के कन्धो को हिलाते हुए कहा, “बिठो ! मेरे
प्यारे विठो ! स्वम में मी मवानी मुभसे मिली थी । कैसा भव्य खखूप था.।
गौर वणं, बड़ी-बड़ी श्रोखि, मस्तक पर कुंकुम, शरीर पर सुन्दर अरुण वस्त्र,
स्वणं मुक्ता तथा विविध रल्ञ-जटित अलंकार ।> माललोजी की श्रं भर आयीं
वे भ ते ही गये, “उन्होने मुझसे कहा है कि में तेरे ऊपर प्रसन्न हूँ । त् शक्ति
शाली हणा । ठ संपक्ति मिलेगी | ठम्हारे बेटे का उसी से विवाह होगा, जिससे
_ ठमने सोचा है । तू उसी चीटी के बिल्न को खोद। भीतर एक साँप रहता है ।
वह मेरा ही स्वरूप है । ठम उसे नमस्कार करना वह हट जायेगा । यह सम्पत्ति
तथा सम्मान तेरे सत्रह पदी तक र्देगा । इतना कह देवी चली गयी `
मालोजी की बातों क्षाः विश्वास विठोजी को नहीं हुआ। वे चुपचाप बात
पुनते रहे | अ्रन्त में दोनों माई उठे और उस चीटीं के बिल की ओर गये ॥
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