समीचीन धर्मशास्त्र | Samichin Dharmshastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
353
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ समीचीन-घधमंशास्त्र
समीप ररेय्यूर से की है जो प्राचीन चोलवंशकी राजधानी थी।
कहा जाता है कि उरगपुरमें जन्म लेकर बड़े होने पर जब शान्ति-
वर्मा ( समन्तभद्रका गृहस्थाश्रमका नाम ) को ज्ञान हुआ तो
उन्दोनि कांचीपुर मेँ जाकर दिगम्बर नग्नाटक यतिकी दीक्ता ले
कती श्रौर श्रपने सिद्धान्तकि प्रचारके लिये देशके कितने दी भागों-
की यात्रा की । श्राचाय जिनसेनने समन्तमद्रकी प्रशंसा करते हुए
श्ट कवि, गमक, वादी श्रीर् वाग्मी कहा र । च्रकलंकने समन्त-
भद्रके देवागस अन्थकी अपनी अपष्टशती विदवतिमें उन्हें भव्य
श्द्धितीय लोकचनज्ञु कहा दै । सचमुच समन्तमद्रका अनुभव बढ़ा
चढ़ा था । उन्होंने लोक-जीवनके राजा-रंक, उच्च-नीच, सभी
रस्तोंकी आँख खोलकर देखा था और अपनी परीक्षणात्मक बुद्धि
अ्रौर विवेचना-शक्तिसे उन सबको सम्यक् दशन, सम्यक् आचार,
ओर सम्यक् ज्ञानकी कसौटी पर कसकर परखा था। इसीलिये
विद्यानन्दस्वामीने युक्त्यनुशासनकी श्रपनी टीकामे उन्हें 'परीक्षे-
क्षण” ( परीक्षा या कसोटी पर कसना ही है आँख जिसकी ) की
सार्थक उपाधि प्रदान की ।
स्वामी समनन््तभद्वने अपनी विश्वलोकोपकारिणी वाणीसे न
केवल जैन मागंकी सब ओरसे कल्याणकारी बनानेका प्रयत्न
किया (८ जैनं वत्मे समन्तभद्रमभवद्धद्र' समन्तान्मुहुः ), किन्तु
विशुद्ध मानवी दृष्टिसे भी उन्होंने मनुष्ययों नैतिक घरातल पर
प्रतिष्ठित करनेके लिये बुद्धिवादी दृष्टिकोण अपनाया । उनके इस '
इष्टिकोणमें मानवमात्रको रुचि हो सकती है । समन्तभद्रकी
हृष्टिमें मनकी साधना, हृदयका परिवतेन सच्ची साधना दै, वाद्य
झाचार तो आडम्बरोंसे भरे हुए भी हो सकते हैं। उनकी गजना
है कि मोद्दी मुनिसे निर्मोह्ी ग्रहस्थ श्रेष्ठ है ( कारिका ३३ )।
किसी ने चाहे चण्डाल-योनिमें भी शरीर धारण किया हो, किन्तु
यदि उसमें सम्यगद्शनका उदय होगया दहै,तो देवता ऐसे व्यक्ति-
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