तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा | Tirthakar Mahavir Aur Unaki Aacharya - Parampara

Tirthakar Mahavir Aur Unaki Aacharya - Parampara by डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

Add Infomation About. Dr. Nemichandra Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मार्ग भी नहीं है। भोगी और योगीका मार्ग एक केसे हो सकता है। तभी तो गीतामें कहा है-- या निशा सर्वंभतानां तस्यां जागति संयमी । यस्‍्यां जाग्रति भूतानि सा निज्ञा पश्यतो सुने: ॥ सब प्राणियोंके लिए जो रात है उसमें संयमी जागता है और जिसमें प्राणी जागते हैँ वह आत्मदर्शी मुनिकी रात है। इस प्रकार भोगी संसारसे योगीके दिन-रात भिन्न होते हैं । संयमो महावी र- ने भी आत्म-साधनाके द्वारा कातिक कृष्णा अमावस्यके प्रातः सूर्योदयसे पहले निर्वाण-लाभ किया । जैनोके उल्केखानुनार उसीके उपलक्षमे दीपमालिकाका आयोजन हुभा ओर उनके निर्वाण-लाभको पच्चौस सौ वषं पर्णं हुए । उसके उपलक्षमें विश्वमें महोत्मतका आयोजन किया गया है । उसीके स्मृतिर्में 'तोर्थंथर सहावीर ओर उनकी आचायं-परम्परा' नामक यह बह॒त्काय ग्रन्थ चार खण्डोंमें प्रकाशित हो रहा है। इसमें भगवान महावीर और उनके बादके पच्चीस-सौ वर्षोंमें हुए विविध साहित्यकारोंका परिचयादि उनकी साहित्य-साधनाका मूल्यांकन करते हुए विद्वान लेखकने निबद्ध किया है। उन्होंने इस ग्रन्थके लेखनमें कितना श्रम किया, यह तो इस ग्रन्थको आद्योपान्त पढ़नेवाले हो जान सकंगे | मेरे जानतेमे प्रकेत विषयसे सम्बद्ध कोई ग्रन्थ, या लेखादि उनको दुृष्टिसे ओझल नहीं रहा । तभी तो इस अपनी कृतिको समाप्त करनेके पश्चात हो वे स्वगत हो गये ओर -ईसे प्रकाशमें लानेके लिए उनके अभिन्‍न सखा डॉ० कोठियाने कितना श्रम किया है, इसे वे देल नहीं सके । भगवान महावीर ओर उनकी आचायंपरम्परा'में लेखकने अपूना जीवन उत्सगं करके जो श्रद्धाके सुमन चढ़ाये हैं उनका मल्यांकन करनेकोी क्षमता इन पंक्तियोके लेखकमे नहीं है । वहू तो इतना ही कह सकता है कि आचार्यं नेमिचन्द्र श्ञास्त्रीने अपनो इस कृतिके द्वारा स्वयं अपनेको भी उस परम्परामें सम्मिलित कर लिया है । उनको इस अध्ययनपूर्ण कृतिमें अनेक विचारणीय ऐतिहासिक प्रसंग आये हैं। भगवान महावी रके समय, माता-पिता, जन्मस्थान आदिके विषयमें तो कोई मतभेद नहीं है । किन्तु उनके निर्वाणस्थानके सम्बन्धमे कुछ समयसे विवाद्‌ खड़ा हो गया है । मध्यमा पावामें निर्वाण हु, यह्‌ सवंसम्मत उल्लेख है। तदनुसार राजगृहीके पास पावा स्थानको ही निर्वाणभूमिके रूपमे माना जाता है। वरहा एक तालाबके मध्यमे विल्लार मन्दिरमे उनके चरण- प्राक्‌ कथन : ११




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now