तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा | Tirthakar Mahavir Aur Unaki Aacharya - Parampara
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
456
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मार्ग भी नहीं है। भोगी और योगीका मार्ग एक केसे हो सकता है। तभी तो
गीतामें कहा है--
या निशा सर्वंभतानां तस्यां जागति संयमी ।
यस््यां जाग्रति भूतानि सा निज्ञा पश्यतो सुने: ॥
सब प्राणियोंके लिए जो रात है उसमें संयमी जागता है और जिसमें
प्राणी जागते हैँ वह आत्मदर्शी मुनिकी रात है।
इस प्रकार भोगी संसारसे योगीके दिन-रात भिन्न होते हैं । संयमो महावी र-
ने भी आत्म-साधनाके द्वारा कातिक कृष्णा अमावस्यके प्रातः सूर्योदयसे पहले
निर्वाण-लाभ किया । जैनोके उल्केखानुनार उसीके उपलक्षमे दीपमालिकाका
आयोजन हुभा ओर उनके निर्वाण-लाभको पच्चौस सौ वषं पर्णं हुए । उसके
उपलक्षमें विश्वमें महोत्मतका आयोजन किया गया है ।
उसीके स्मृतिर्में 'तोर्थंथर सहावीर ओर उनकी आचायं-परम्परा' नामक
यह बह॒त्काय ग्रन्थ चार खण्डोंमें प्रकाशित हो रहा है। इसमें भगवान महावीर
और उनके बादके पच्चीस-सौ वर्षोंमें हुए विविध साहित्यकारोंका परिचयादि
उनकी साहित्य-साधनाका मूल्यांकन करते हुए विद्वान लेखकने निबद्ध किया
है। उन्होंने इस ग्रन्थके लेखनमें कितना श्रम किया, यह तो इस ग्रन्थको
आद्योपान्त पढ़नेवाले हो जान सकंगे | मेरे जानतेमे प्रकेत विषयसे सम्बद्ध
कोई ग्रन्थ, या लेखादि उनको दुृष्टिसे ओझल नहीं रहा । तभी तो इस अपनी
कृतिको समाप्त करनेके पश्चात हो वे स्वगत हो गये ओर -ईसे प्रकाशमें लानेके
लिए उनके अभिन्न सखा डॉ० कोठियाने कितना श्रम किया है, इसे वे देल नहीं
सके । भगवान महावीर ओर उनकी आचायंपरम्परा'में लेखकने अपूना जीवन
उत्सगं करके जो श्रद्धाके सुमन चढ़ाये हैं उनका मल्यांकन करनेकोी क्षमता
इन पंक्तियोके लेखकमे नहीं है । वहू तो इतना ही कह सकता है कि आचार्यं
नेमिचन्द्र श्ञास्त्रीने अपनो इस कृतिके द्वारा स्वयं अपनेको भी उस परम्परामें
सम्मिलित कर लिया है ।
उनको इस अध्ययनपूर्ण कृतिमें अनेक विचारणीय ऐतिहासिक प्रसंग आये
हैं। भगवान महावी रके समय, माता-पिता, जन्मस्थान आदिके विषयमें तो
कोई मतभेद नहीं है । किन्तु उनके निर्वाणस्थानके सम्बन्धमे कुछ समयसे
विवाद् खड़ा हो गया है । मध्यमा पावामें निर्वाण हु, यह् सवंसम्मत उल्लेख
है। तदनुसार राजगृहीके पास पावा स्थानको ही निर्वाणभूमिके रूपमे
माना जाता है। वरहा एक तालाबके मध्यमे विल्लार मन्दिरमे उनके चरण-
प्राक् कथन : ११
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