मानवता और विश्वप्रेम | Manavata Aur Vishva Prem

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Manavata Aur Vishva Prem by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कानून--अर्थात्‌ मनुष्य जाति के भ्रातृभाव को--सबकी इकाई को खण्डित करने का ही यह परिणाम-ससार के सभी कष्ट, दुख, पीड़ा, व्याकुलता तथा दुर्देशा है । अब समझने का प्रयत्न कीजिए कि किस तरह हम सबके भौतिक शरीर एक है। आप प्रएन करेगे कि यह कंसे सम्भव है ? वह्‌ शरीर उस स्थान पर बेठा है तथा यह शरीर इस स्थान पर खडा है । फिर वे 'एक' किस तरह हो सकते है ? उत्तर यह है कि ठीक उसी प्रकार, जैसे सागर की एक लहर यहाँ आभासित होती है भौर दूसरी लहर वहाँ प्रतीत होती है, एेसा लगता है कि उन्हे पृथक्‌ + पथक्‌ स्थानो पर स्थित किया गया है । उनके आकार भी भिन्न-भिन्न लक्षित होते है; परन्तु वस्तुत वे दोनो तरे एक है । कारण, वे उसी जल से है, सागर एक ही है, जो इन तरगो मे दृष्टि- गोचर* होता है। जिस जल ने इस समय इस तरग को बनाया है, वही कुछ समय उपरान्त अन्य तरग को वनाएगा । तरगो के विषय में हमे जो बात सत्य दिखाई पडती है, वही बात हमारे-आपके भौतिक शरीरो की है। जो चीज़ इस समय इस शरीर का निर्माण३ करती है वही कुछ काल के उपरान्त दूसरी देह का निर्माण करती है। यही नही, अपितु इससे भी अधिक, जो भौतिक परमाणु, जिसे आप राम का शरीर कहते है उसके निर्मायक प्रतीत होते है, वे आपके जीवन-समय मे ही दूसरे शरीर में चले जाते है। सॉस की क्रिया से यहु स्पष्ट प्रभाणित होता है । आप ओषजन (055০০) अन्दर खीच रहे है तथा कार्बन डायक्साइड बाहर निकाल रहे है 1 पौधे साँस हारा इस कार्वेन डायक्साइड को अन्दर खीच रहे है, और 1, पृथकु--अलग । २ दहष्टिगोचरन् दिखाई देना । 3 निर्माण वनाना ।




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