यूरोप के प्रसिध्द शिक्षण सुधारक | Europe Ke Prasidh Shikshan Sudharak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिक्षाके उद्देश यहाँपरयदह लिखनेकी माचश्यकता नहीं कि वालुफकी शिक्षा- की आायश्यकता है। सबको शिक्षाकी आवश्यकता कभी न कभी “मलशुभव द्वोती है। पर शिक्षाकी परिसापा कया है भौर किस “पिधिसे हमको शिक्षा दी जा सकती है, इन बातोंमें बड़ा मत- भेव रै। दसी मतभेदको प्रकाशिस करनेफेखिये यूरोपके शिक्षण खुार्फोक्ती निर्धारित फी हुई शिक्षण -पद्धति्यौक्ा चिचरण लिखा गया है । आजकल शिक्षा एक बहुत ही साधारण शब्द है। लथ कोई समभते हैं कि थे शिक्षाफे यास्तविक उद्देशले परिचित हैं और शिक्षासम्बन्धी उनके घिचारोंमें परिचर्तन होनेफी गुष्जाइश नहीं है। वास्तवमें देखा जाय सो शिक्षा रेस सर विय नदीं है । यह बड़ा ही गहन विपय है | इसके खऋम्यन्धमें फोई अन्तिम निर्णयात्मक चात्रप नहीं कहें जा सकते। प्रधानतया शिक्षाके दो बड़े माग फिये जा सकते ह६--(१) साधारण शिक्षा, (२) विशिष्ट शिक्षा या प्राफारक 'शिक्षा। (१) साधारण शिक्षा-जिस श्षणसे शिशुरूपमें एफ मनुष्य इस संसारतमें सूर्यका श्रकाश देखता है, उसी ध्तणसे उस मनजुष्य- की शिक्षा आरम्भ हो जाती है। क्षण क्षणमें उत्तको उठते पैठत, भ्यीते जागते, चादा पदार्थोका सेचेदत शीरं उनके सम्बन्धक अगुभव मिलये ऊगरता दै। ज्यों ज्यों घह उप्नमें यढ़ताजाता हैं, दयः स्‍्थों उसकी शिक्षाका दायरा भी विस्तोर्ण दोता जाता है । , मनै माना विता, भाई गीर खड़ेस पड़ोसके मजुष्योंसे उसकी 'पग पग रस शिक्षा मिझती जाती दे, चादे यद शिक्षा छुरो हो था




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