पद्म पुराणम् | Padmapuran - I
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
483
श्रेणी :
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No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषयानुक्रमणिका १३
एकौ दोषां पव
सा्ञाकार होनेपर नारदने लवणाहुशसे कहा कि तुम दोनोंकी विभूति गम और लद्मणङे समान
हो। यह छुन कुमारोने राम और ल्क्तमणका परिचय पूछा | उत्तरस्वरूप नारदने उनका
परिचय टिया । राम श्रौर रद्मण॒का परिचय देते हुए नारदने सीताके परित्यागका भी
उल्लेख किया। एक गर्मिणी ज्लोको असह्याय निर्जन अ्वीमें छुडवाना ''यह रामकी
बात कुमारोकी अनुकूल नहीं जेंची और उन्होंने रामसे युद्ध करमेका निश्चय कर लिया |
इसी प्रकरणमें सीताने अपनी सत्र कथा पुन्नोंकी सुनायी | तथा कह कि तुम ज्ञोग अपने
पिता तथा चाचासे नम्नताके साथ मिलो । परन्तु वीर कुमारोको यह टीनता रुचिकर नहीं
हुई उन्होंने सेना सहित जाकर अयोध्याको घेर लिया तथा राम लद्रमणके साथ उनका घोर
युद्ध होने लगा । २४६-२६२
एकसौ तीनवाँ पर्व
राम और लक्ष्मण श्रमोध शत्तोंका प्रयोग करके भौ जत्र दोनो कुमारको नक्ष जीत पाये तब
नारढकी सम्मतिसे सिद्धार्थ नामक चुलकने राम-लद्मएके समन्तं उनका रद्य प्रकट करते
हए कहा कि अहो | देव ! ये श्रापके सीते उद्रसे उघनन युग पुत्र है 1 सुनते दही राम-
लक्ष्मणने श्र फेक दिये तथा पिता पुत्रका बडे सौदादसे समागम हुत्रा । राम-लदमणकी
प्रसत्नताका पार नहीं रहा | २६३-२६६
एक सौ चारवाँ पर्व
हनूमान् , सुग्रीव तथा विभीषण॒की प्रार्थनापर रामने सीताको इस शतंपर बुलाना स्वीकृत कर
लिया कि वह देश देशके समस्त ल्लोगोंके समच्ष अपनी निर्दोषता शपथ द्वारा सिद्ध करे ।
निश्चयानुसार देश-विदेशके ज्लोग बुलाये गये । हन्मान् आदि सीताको मी पुण्डरीकपुरसे
ले आये। जन्न सीता राज-दरबारमें रामके समक्ष पहुँची तब रामने तोक्षण शब्दों द्वारा
उसका तिरस्कार करिया । सीता सब्र प्रकारसे अपनी निर्दोषता सिद्ध करनेके लिए, शपथ ग्रहण
करतो है। राम अग्निप्रवेशकी श्राज्ञा देते है सत्र द्ाद्यकार छा जाता है पर राम अपने
वचनोंपर अडिग रहते हैं। अ्मिकुए्ड तैयार होता है ।'''महेन्द्रोदय उद्यानमे स्भूषण
मुनिराबके ध्यान और उपसगंका वर्णन “| विद्युद्वक्त्रा राक्सीने उनपर उपसर्ग किया था
इसका वणेन ' उपसरंके अनन्तर पनिरालको केवश्ञान हो गया यौर उसके उस्सवके
लिए वहाँ देवोंका आगमन हुआ | २७०-२७८
एक सौ पाँचवाँ पे
तृण और काष्ठसे मरी वापिका देख राम व्याकुत्न होते हैं परन्तु लदमण कहते हैं कि आप व्यप्र
न हौ सतीका माहात्म्य देखं । सीता पञ्च परमेषठीका स्मरणकर श्रग्निवापिकमें कूदं पड़ी।
कूदते ही समस्त अग्नि जलरूप हो गई। वापिकाका जल बाहर पैज्कर उपस्थित जनताको
* प्लाबित करने छगा बिससे ल्लोग बहुत दुःखी हुए । अन्तमें रामके पादस्पशंसे बढ़ता हुआ
जल्न शान्त हो गया | कमत्न-दलपर सीता आरूढ् है। छ्वशाहुश उसके समीप पहुँच জার
है | रामचन्द्रजी अपने अपराधकी क्षमा मॉगकर घर चल्नेके लिए प्रेरित करते है ! पर्न
सीता संसारसे विरक्त हो चुकी थी इसलिए उसने घर न जाकर प्रथिवोमती आर्थिक्षके पास
दीज्षा के ली ।**राम स्वभूषण केवल्लीके पास गये । केवछीकी विव्य अनि द्वार घमंका
निरूपण हुआ। चत॒र्गतिके दुश्खोंका वर्णण भवशकर रामने पूछा कि भगवन् | क्या
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