आत्म मीमांसा | Aatm Meenasa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क, और यजुबेंद- (० ३१) के पुरुषसूक्त के आधार पर यह कहा जा सकता है कि संमस्त विश्व के मूल में पुरुष की सत्ता है। इस बात भ सा ০৪ नहीं ये টি सतन ष का उछेखं करने की तो आवश्यकता ही नहीं'कि यह्‌ पुरुषं चेतनं दे | ब्राह्मण काल में अजापंति ने इंसी पुरुष का स्थान ग्रहण किया । इस प्रजापति को सम्पूर्ण विश्व का स्रष्टा माना गया है” । : त्राह्मण.काल तक बाह्य जगत्‌ के मूल की:खोज का प्रयत्न किया गया है ओर उसके मूल में पुरुष अथवा ग्रजापति की कल्पना की गई है।. किन्तु. उपनिषदों में विचार की दिशा में परिवतेन हो गया है। भुख्यतुः आत्मविचारणा ने विश्व विचार का स्थान ग्रहण कर लिया है। अतएव आत्म-विचार की क्रमिक प्रगति. के इतिहास का ज्ञान भ्राप्त करने के लिए उपनिषद्‌ प्राचीन साधन हैं। | उपनिषदं मे टग्ोचर 'होनेवाली' आत्मस्वरूप की विचारणा का ओर उपनिषदों की पचना का काल एंक ही है--यह बात नहीं मानी जा संकती, प्रन्तु उपनिषद्‌ की रचना से भी पूर्व दीघे काल ५५४ विचार-प्रवाह चले आ रहे थे उनका' उल्लेख उपनिषदों. में स है, यह सानना उचित दै । क्कि उपनिषद्‌ वेद्‌ के अंतिम भाग माने जते हैं, इस लिये कोई व्यक्ति यह अनुमान भी कर सकता है कि केंचल वैदिक परंपरा के ऋषियों ने ही आत्म- विचारणा की है ओर उसमें किसी अन्य परंपंरां की देन नहीं है । किन्तु उपनिषदों के पूर्वं की वैदिक विचार धारा तथा, उसके वदे की मानी जाने बाली ओओपनिषदिक वैदिक विचार धारा की টি वालों को दोनों में जो मुख्य भेद दिखाई देता है, विद्वानोंते उसके कारण की खोज की है ओर उन्होंने यह सिद्ध ৭003০ 0158016 761100. 9. 67, 342.




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