जैन अध्ययन की प्रगति | Jain Adhyyan Ki Pragati

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Adhyyan Ki Pragati by दलसुख मालवणीय - Dalsukh Malvneeya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दलसुख मालवणीय - Dalsukh Malvneeya

Add Infomation AboutDalsukh Malvneeya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१३. में श्रमी भी जीवित है। आचाय॑ शीलांकक्ृत 'चउपन्न महापुरुस चरिः अभी अप्रकाशित है। प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी उसे प्रकाशित करने जा रही है । ५ जैन धर्म के प्रचार का भौगोलिक दृष्टि से वर्णन करने वाली अनेक पुस्तकों की सकता वन गई है। उस सकल में पी० बी० देसाईकृत थे क्षण्यआ॥ भ) 90011) 10019, 00. 90175 8109, 1770127:91093 হক্ক महत््वपूण कड़ी है | इसमें तामिल, तेरूगु और कन्नड साषा-भाषी प्रदेशों में जैन घम - के प्रचार का पेतिहासिक आधारों पर वर्णन है। तथा हैदराबाद प्रदेश के कन्नड शिल्ा लेखो का संग्रह, अंग्रेजी विवरण और हिन्दीसार के साथ पहली चार्‌ ठी दिया गया है । पुस्तक का प्रकाशन जीवराज जेन अन्थमालला में हुआ ই। उसी संकला में श्री राय चौधरी. ने 11500 1 [312 लिखकर एक और कडी जोडी है। प्रादेशिक दृष्टि से विविध श्रध्ययन ग्रन्थों के द्वारा ही समग्रभाव से जेन धर्म के प्रचार क्षेत्र का ऐतिहासिक चित्र विद्वानों ऊ समक्ष आ सकता है। अभी भी कई श्रदेशों के विषय में लिखना बाकी ही है। 'पाश्वेनाथ विद्या्रम, बनारस से प्रकाशित डा० मोहन लाल मेहता का मद्दानिवन्‍्ध 810, 7355 :0108 कर्मशाख का मानसशा की दृष्टि से एक विशिष्ट अध्ययन है। अंग्रेजी में डा० ग्लासनप्‌ ने जेन कर्म मान्यता का শি অন दृष्टि से विवरण दिया ही था किन्तु उस्र मान्यता का सवाद विसंवाद, आछु- निक सानसशाख से तथा अन्य दर्शनों से किस अकार है ग्रह तो सर्वप्रथम 'डा० मेहता ने ही दिखाने का प्रयत्न किया हि। | कद सें छोटी किन्तु पूजा सबधी ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर लिखी गई प्रसिद्ध विद्वान्‌ आचाये কযাহ্য विजयजी को 'जिनपुजापदधति/ विजयजी को “जिनपुजापद्धति' पुस्तिका में जेन पजा पद्धति म कालक्रम से कैसा परिवर्तन होता श्राया हे इस विषय का सुन्दर निरूपण है। जेन कल्चरल रिसर्च सोसाइटी द्वारा डा० उमाकान्त शाह्‌ का निबंध [वर्ण असि में कालकाचार्य! प्रकाशित हुआ है। इतिहास के विद्वानो का ध्यान दस प्तक की शरोर मै विशेषतः आकर्षित करना चाहता हूँ। प्रथम बार ही लेखक ने प्रामाणिक आधार से ये स्थापनाएँ की हैं कि जैनाचार्य कालक सारत- चं के बाहर सुवं भूमि तक गये थे। सुवर्णभूमि बर्मा, सलयद्दीपकल्प, | मातन घौर मलयद्वीप समूह्‌ है । आचार्य कालक अनाम ( चंपा ) तक गये। ५५




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now