महाराष्ट्र - जीवन - प्रभात | Maharashtra - Jivan Prabhat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तासरा परिच्छेद सरयूवाला _. एमफजंएन्‍लेदार से विदा लेकर रघुनाथ भवानी देवी के प्‌ प्ि न. मन्दिर की ओोर चले । शिवाजी ने जव इस डुर्स 52 हि रथ को जय किया था तब उसके थोड़े ही दिनों वाद तप िंए उसमें एक देवी की प्रतिमा स्थापित कर दी थी घौर झम्बंर देश के एक कुललीन घ्नाह्मण को घुलाकर देवी-सेवा के लिए नियुक्त कर दिया था । यही कारण हे कि युद्ध के दिनों में विना देवी की पूजा दिये छुए शिवाजी कोई काय्ये ध्यारस्थ नहीं करते थे । रघुनाथ जवानी की उसंगों से परिपूर्ण हो श्यानन्द के साथ झपने रुप्णकेशों को खुघारते हुए श्रा रहा था और साथ ही युद्ध का एक सावपूर्ण गीत भी गाता जाता था । ज्योँ ही वह मंदिर के पास पहुँचा कि झचानक उसकी दृष्टि मन्दिर की निकटवर्ती छत पर पड़ गई । सूय्ये सगवान झास्ताचल पार कर घ्युके थे परन्तु पश्चिम दिशा के झाकाशसरउल में झंभी झापकी झाभा शिल- सिला रही थी । पक्षीगण श्रपने वसेरे दूँढ रहे थे । रघुनाथ भी घ्पाज चडडुत ही थक गया था इसीलिंए चह उस छुत की और देखता छुझा पास के पक चवूतरे पर बैठ गया । ज़रा और अरैँघेरा हो जांचे पर उस उद्यान में पुष्पविनिन्दित एक चांलिकी झाकरें खंड़ी हो गंई। रघुनाथ उसकी देख विस्मित




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