लामाओं के देश तिब्बत में | Lamaon Ke Desh Tibbat Men

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Book Image : लामाओं के देश तिब्बत में - Lamaon  Ke Desh Tibbat Men

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तिब्बत के रास्ते में श्३े हिमालय की उँची-उँची चेटियाँ रोक लेती हैं इससे इस ओर उनका गुज़र नहीं होता । भूले-भटके बादल झा भी जाते हैं ते उनका पानी मारे ठएड के जमकर बफे के रूप में गिरता है। चेोथे दिन सन्ध्या लगभग जहाँ पहुँचे वहाँ एक ख़ाली मुसाफिरखाना था । उसी में रात बिताने का निश्चय किया । उस दिन जेसी करारी भूख लगी थी वैसी ही नींद भी । खा-पीकर से गये। दूसरे दिन सबेरे नींद टूटने पर देखा कि चारों ओर सफेद रूई के फाहे-से बिखरे पढ़े हैं । ऐसा जान पढ़ा मानों इस ठण्ड के देश में किसी धुनिये ने बढ़ी सी रज़ाई भरने के लिए रुइ का धुनकर चारों ओर बिछा दिया है। पहाद़ों की चेटियेाँं पर भी उसी रुई का ढेर लगा है। यह दृश्य लगता ते बहुत ही भला यथा किन्तु हमारा ते दिल ददल गया। सब चेपट ठण्ड को बुड॒ढा हमारे जाने से पहले ही पहांढ़ के पघेरकर बेठ गया पहाड़ी दर्रा बहुत जल्द बन्द हो जायंगा । किन्तु हमने आशा नहीं छोड़ी । जब घर से निकले हैं तब तिब्यत जरूर जाय गे । हम लोग जिस रास्ते से आ रहे थे वही प्रत्येक पहाड़ पर घृम-फिर- कर चढता-उतरता तिब्बत की सरहद का चला गया है। सब इसी रास्ते झाति-जाते हैं । इस कारण इस रास्ते पर चलने से पंग-पग पर पकड़े जाने का ढर था। लेकिन सामने एक गाँव था । दाजिलिंग में ही हमने सुना था और बेवकूफ ने भी कहा कि उस गाँव से एक और रास्ता सरहद का जाता है। इस रास्ते से जाने में पकड़े जाने का डर कम हे क्योंकि झबे जाड़े का मौसम झा रहा है। गर्मी के मौसप का छोड़कर उस रास्ते से का झाता-जाता नहीं । रास्ता जेसा सरूनसान हे वेसा ही उँचा-नीचा है । उसका पार करना भी सदज नहीं। उस रास्ते में




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