लघुता से प्रभुता मिले | Laghuta Se Prabhuta Mile
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लघूता, से प्रभूता मिले ३
अपना मुल्य है । उपकरणो का ब्धुत्सगं करभे वाला कपर से हल्का रहता है गौर
भीतर से भी हल्का रहता है । भक्तपान का ब्युत्सगे साधना का विशेष प्रयोग है 1
आत्मवली व्यक्ति ही आहार-पानी का विसर्जन कर पाते है।
अब तक जिस व्युत्सर्ग की चर्चा हुई, वह द्रव्य-व्युत्सगं है। इससे भी अधिक
महत्त्वपूर्ण होता है भाव-व्युत्सग | इसमे कपाय छूटता है, ससार छूटता है।और
कर्म छूटते है । शरीर-व्युत्सगं से भी अधिक कठिन है कपाय-व्युत्सगें। कषाय
आत्मा का जितना अहित करता है, गरीर नही कर सकता ) कपाय के दश काले
नाग के दंशो की तरह पीडक होते ह । इस दृष्टि से केपाय को ईश करना, कषाय
को हल्का करना बहुत जरी है ।
कषाय व्युत्सगं मे आता है हृल्कापन
शिष्य ने तपस्या करने से पहले गृह की अन्ना ली । शुर ने कहा--हत्के बनो ।
शिष्य ने तीन दिन की तपस्या की। वह पारणे के लिए आज्ञा लेने भाया । गुर
ने कहा--हलल््के वनो 1 शिष्य ने दो दिन भौर वढा दिए । ¶चोला हौ सया । पारणे
के समय गुरु ने वही वात दोहराई। शिष्य का मन बढा | अठाई हो गईं। फिर
पारणे का समय आया । गुरु ने कहा--हत्के वनो । शिष्य ने पन्द्रह दिन की
तपस्या कर ली । गर का रुख नही बदला । मासखमण की तपस्या पूरी होने पर
भी शुरु ने कहा--हल्के वनो । इस वार शिष्य का सतुलन टूट गया । वह् आवेश
मे आकर वोला--'एक ही रट लगा रखी है--हल्के वनो, हल्के অলী । कभी दौ
दिन उपवास करके तो देखें । शरीर सुखकर काटा हो गया | सारा वजन घट
गया। अब और क्या हल्का बनू ?'
गुरु ने शिष्य को प्रतिबोध देते हुए कहा---तपस्या कर शरीर को अस्थिपजर
बनाने से क्या लाभ ? हल्के बनो कपाय से । जब तक क्रोध, मान, माया और लोभ
का भार ढोते रहोगे, हल्कापन नहीं आएगा। कोई व्यक्ति उपवास कर सके या
नही, तपस्या कर सके या नहीं, कषाय से हल्का हो जाए तो जीवन सौदर्यं से भर
जाता है । अल्पकरोधी, अल्पमानी, अल्पमायी और अल्पलोभी व्यक्ति का सहवास
सबके लिए सुखद होता है !
उपकरण की आसर्वित वडाती है मूढता
कपाय का हल्कापन अवश्यक, वैसे ही उपकरणो का हल्कापन जरूरी है।
कषाय भीतर रहता है । उपकरणो का भार सामने दिखाई देता है । जो साधक
उपकरणो का व्यामोह नही छोड सकते, वे उपकरणो की भोटमे कषाय का भार
बढा लेते हैं ।
एक यति के दो शिष्य थे। यत्ति के विवगत होने पर उन्होने यति की सपत्ति
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