कान के रोग और उनकी चिकित्सा | Kan Ke Rog Aur Unki Chikitsa
श्रेणी : साहित्य / Literature, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.42 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीसरा अध्याय कान को स्वस्थ रखन फे नियम ्/ शान में समय-समय पर ग्बिसरीन या सरसों कफ सेल की दा-चार यूँ दें शक्षते रदन से भीतरी भाग नम बना रहता है । र-पानी में नददान के लिये डुभफी सगाते समय दानों फानों का अगुलियों से थन्द कर लेना क्ञाभज्नक हैं । इसस पानी फ़ान के भीतर नहीं घुम सकता । इ-फानों फो खीचना या मराड़ना जैसा कि प्राय इमारे यहाँ के पुराने दरें फ पणिझत ठथा मौलयी किया करते हैं बड़ा दानिकारक है.। कानों के मरोदने से किदनी ही थार भीतरी भाग में खराधी उस्पन्न दो जाती है और यालऊ यहरा दो जाता है। पान का मैक्त कमी किसी लुफीली या सीक्य वच्चु स नहीं निकालना चाहिये । इसका एक सात्र उपाय कान को पिचकारी से थो दना है । ५--घहाफ का शब्द अथवा दीज्र करफश ध्वनि फानों को प्रिय जान पढ़ती है इसक्षिये यथासम्भव उसस बचना चाहिये । इ--सट्ोत की ध्यनि मस्तिप्क को शान्त और चित का आझानन्दिव करती है । सुन्दर राग-रागनियों द्वारा किवनी ही प्रकार की वोमारियां दूर हो जाती हैं ।
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