सौन्दर्य - दर्शन | Saundarya Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)/भगवद्, मेरे मत्र का हर्ष ने जाते समा क्यों नहीं
हा है ? मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं अपनी श्ात्मा का
वरमावतं पूरा करने मे भ्रव एकपल का भी विलम्ब क्यौ
रु ? मुके मागे दिलादये प्रमु किं मैं जीवन का समग्र
प्रप्य तुरन्त प्राप्त कर तू, एक साय प्राप्त कर बरु, भ्राज
ही प्राप्त कर छू कं
दीक्षित होने के तुरन्त बाद मुनि ग्रजसुकमाल ने
भगवान् नेमिनाथ से उच्चामिलापापुवक नम्र निवेदन किया।
“में तुम्हारी उत्कृष्ट भावता को समभता हूँ, गज-
सुकमाल तुम ऐसी হী সনি গাদা নী *
'मुझ्े ऐसी कठोर साधना का माग दिखाइये भग*
यान कि मेरी अभिलापा और झापको वाणी दोनो एक साथ
फलवती वन जाये । मेरी इस उत्कटा को सफल करें, सवज्ञ-
देव |! करवद्ध होकर मुनि गजसुकमाल भाज्नार्थ खडे रहे।
ˆ “गज मुनि, जो भाज्ञा मैंने किसी को नहीं दी, वहू
तुद दे रदा हूँ ।
श्रसीम कृषा है मगृवच्, श्रापकी ?
“यह मेरी कृपा नही, तुम्हारी ही विचारसरणी की
| परमोच्चता है ।!
आज्ञा दें, प्रमु 77
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