मगरमच्छ | Magarmacch

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Magarmacch by शम्भूदयाल जी सक्सेना - Shambhoodayal Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मगरमच्छ 1] [७ तब में यह यात इस प्रकार नहीं सोच पाया था कि एक अबला की विवशता ॐ सिवा केदार के पीठे कोई वल्ल नहीं था। और यह तथ्य है कि बहुधा यद बल ही गुण कहकर पूजित होता है । पिता फे भ्रमाव समे, घन के अभाव सें, अभिभावक के अभाव में गुणों का भी अभाव लोगों को दिखाई पड़ता था। यदि मॉ-याप का कोई भाग्यशाली बेटा इतनी कला-कुशलता दिखा सकता तो उसमे चार चांद लगे चिना न रहते । केदार ने मुझे यह सूचना दी कि मेने दो हंस नापु है। उर तालाब से आज तेराऊँगा, दीक शास को चार बजे। इस समाचार से में चंचल द्वो उठा। तीन बजे ही में तमाम बंधनों ' की डपेत्ञा करके घर से निकल भागा | जाकर तालाब के किनारे बैठ गया। भाभी की ध्रखन्नी जीजी ने मेरे कुरते की जेव मे.शाल दी थी । उसीसे मं खेलने लगा । है थोड़ी देर में केदार ध्रा पहुँचा । उसके हाथो में दो हंस थे। लगता था कि अभी पंख खोलकर उड़ जायेंगे । रुद से बने हुए ये दोनों पक्ती उसने पानी की सतह पर छोड़ दिये। हवा से उठती हुए लहरें पुरन्व ही उन्हें बहा ले चलीं। मैं चिल्ला उठा--वे तेर रहे हैं । “ हाँ, तर रहे है। ”? मैंने श्रटन्नी उसके ऊपर फंककर कहा--ये हंस तो में लूगा। , तुम पागल हो । सुम एनका क्या करोगे ? ५५ म भी इन्हें वेराऊँगा। ?? ४ तुम्हें में और बना दूँगा। ?? ४ में तो यही लूँगा। 2) 1 केदार से छीना-रूपटी सें में तालाब के पानी मे जा पदा | कपदै मिट्टी और पानी से सन गये । केदार शंकित হী उठा । इंस मुझे दे दिए । में उन्हें गोद में दबाकर घर ले आया। भाभी को खोई हुई अठन्नी का इन दंसों से संबंध जोदकर घर में




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