साधना - पथ | Sadhna Path

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Sadhna Path  by शम्भूदयाल जी सक्सेना - Shambhoodayal Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साघना-पथ ११ चन्दाबाई-- क्या मे आपके सामने अनेक बार यह स्वीकार नहीं कर चुकी हूँ; कि इसका सारा दोप सेरे ही मत्थे है। में नहीं जानती थी कि वोध मीरा इतनी भावुक है। बह हँसी की बात पर एसा आचरण करने लगेगी; पत्थर के ठाकुर जी को अपना स्वामी कहेगी । रतनसी-- यही तो | चन्दाबाई-- मै अब पढताती हूँ; महाराज । उसका भावावेश; उसकी भक्ति छोर उसकी तन्मयता देख कर कभी- कभी मुके डर होने लगता है। इसी से कहती हूँ; महाराज जल्दी कीजिये। , रतनसी- में र्वय निश्चिन्त नही बेठा हूँ । चन्दाबाई--- प्रमाण ? बिना प्रमाण मै केसे मारने ? रतनसी-- आज मालूम पड़ा कि अपनी बात पर विश्वास कराने के लिये मुे तुस्हारे सामने भी प्रमाण की आात्रश्यकता होगी ? चन्दाबाई-- महाराज मे माता हूँ और अबला भी। , छन्त'पुरवासिनी होने के कारण हम लोगों का कार्येदोन्न बहुत ? सीमित रहता है । पुरुषों का काये-दोत्र विशाल होता है; और इसी से हम प्रमाणों-द्वारा इस बात का पता लयाना चाहती है कि काये की व्यवस्था से हसारी प्रेरणा पढ़ी तो सही रह गई ।




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