भारत आदिम साम्यवाद से दास प्रथा तक का इतिहास | Bharat aadim Samyavad Se Daspratha Tak Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.46 MB
कुल पष्ठ :
245
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीसरे संस्करण की भूमिका ज
में लेती थी, लेकिन अव वह उत्पादन का आधा अंश लेने लगी, यहां तक
कि अपने मुख्य कर्मचारियों के पालन-पोपण के लिए सम्पत्ति अथवा
धन के रूप में भी कर लिया जाने सगा । सामूहिक रूप से श्रधिकृत दम को
सुरक्षित रखने तथा भ्रूमिकर एवं अन्य करों की वृद्धि को रोकने के लिए जो
संघर्ष हुए थे, उनके द्वारा नन्द वंश से लेकर वाद के साम्राज्यों झोर कुछ पहले
के सासाज्यों के भी उत्थान एवं पतन को भलीभांति समभा जा सकता है.
ही उनकों वाह्य आक्रमणों से नष्ट नहीं किया गया था, जैसे कृपारों
एवं सकी थिया के निवासियों ने श्रपने ्राक्रमणों से किया था ) ।
इस प्रक्रिया में उत्पादन की दाक्तियां बढ़ी । दस्तकारी का विकास बड़े
बैमाने पर हुमा उसके कौशल में वृद्धि हुई । विविध दिशाओं में कृषि का
प्रसार हुमा झौर उसके उत्पादन सम्बंधों में भी परिवर्तन हुए ।
प्राचीन गण समाज जब नष्ट हो गये, तो उनके स्थान पर नये समाजों का
जन्म हुमा । कुछ प्रदेशों में (सामाजिक विकास के कुछ क्रमों में) थे नये
समाज भूमि को सामूहिक सूप से श्रधिहृत करते हुए भी पारिवारिक समाज
के श्राधार पर कृपि करते थे । वाद के काल में पारिवारिक समाजों के स्यान
चर ग्रामीण समाजों का निर्माण हुआ । इसमें व्यक्तिगत परिवार के श्राधार
पर खेती होती थी । इन समाजों में उत्पादन के साधनों तथा कौशल के उस
विकास के द्वारा, जिसका विशेष परिवारों के साथ घनिष्ट सम्बंध था, एवं वंश
परम्परा के रूप में व्यवसायों को ले चलने के द्वारा एक वंशगत श्रम विभाजन
की उत्पत्ति संभव हुई । इसी श्रम विभाजन में जाति व्यवस्था तथा उस पर
आधारित एक नये ग्रामीण समाज को जन्म दिया था । यह नया समाज
भारतीय सामन्तवाद का उत्कृष्ट रूप था ।
हम यह कह सकते हैं कि जिस प्रकार से चार वर्णों की व्यवस्था
( धर्म ) वर युग की उत्तरकालीन श्र दास व्यवस्था
व सम्यता के काल की भी विधिपरकनतिकता की द्योतक थी, उसी प्रकार
से जाति व्यवस्था ( जाति धर्म ) भारतीय सामन्तवाद के आविर्भाव एवं उत्थान
का चोतक थी । प्राचीन पारिवारिक समाज के ग्रामों ग्रीमों को
नष्ट करते हुए दास व्यवस्था के स्थान पर इस व्यवस्था ने जन्म ले लिया था श्रौर
उत्पादन की नयी शक्तियों के लिए वह राबसे अधिक उपयुक्त थी। यह
बहुत संभव है कि सौर्य राजदंध के समय इसका श्रादिभावि हुमा हो शरीर बाद
के काल में, यानी गुप्त साम्राज्य (लगभग २०० ई. ) के समय विकसित होकर
यह भावी शताद्दियों के लिए सामन्तवाद का दृढ़ आधार वन गयी हो ।
यह निष्चित है कि इसका प्रसार भारत के सभी क्षेत्रों में एक ही समय में
नहीं हो गया था 1 दे हे
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