स्वर्ण - विहान् | Swarna - Vihan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहली झलक
পাতা
कहाँ बेच हम पा सकती है,
धघनवैभव से दीन ?
हुए भूख से तड़पन्तड़प
वालक निद्रा से लीन ॥
गये पिताजी मजदूरी को
उठकर प्रात काल ।
इधर जननि का देख रहे दो
केसा आकुल हाल
हम है, कृषक जगत का जिनपर
रहता है आधार ।
अन्धकार-सा कंगाली ने
े म्या वहाँ विस्तार ॥
-मोहन-
दृश्य यहाँ का देख करुणतम
भूले हम अभिमान ।
जनि कया मानस मे बरबस
उठता दहै तूफान ।
दु
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