संस्कृति और साहित्य | Sanskriti Aur Sahity
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
335
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अपने एक प्रसिद्ध वक्तव्य में श्री सुमित्रानन्दन पन्त ने बहुत स्पष्टता
से कल्पनामात्र के आधार पर लिखी हुई असम्भव स्वप्नों को रचने-
वाली कविता की निनदा की थी! जो लोग छायावांद की निराशा-
নাহী परम्परा को आगे बढ़ाना चाहते थे और उसी के अनुकरण में
नये साहित्य का कल्याण मानते थे, उन्हीं को लक्ष्य. करके हिन्दी
काव्य में व्यक्तिवताद ओर अतृप्त वासना' नामक लेख लिखा गया
था। इस लेख में व्यक्तिताद ओर अतृप्ति के सामाजिक कारणों
का उल्लेख स्पष्टता से नहीं किया गया। सामाजिक परिस्थितियों
का प्रभाव साहित्य के भाव-प्रकार और शैली पर किस तरह पड़ता
है, यह बात तब मेरे मन में स्पष्ट नहीं थी। फिर भी इस लेख से
यह पतां लगता है कि जिन साहिर-कारों ने उस समय प्रगतिशील
धारणाओं को अपनाया था, उनके चिंतन के अंतर्विरोध और
असंगतियाँ क्या थीं। पंतजी में उस समय भो छायावाद की भत्सना
करने के बावजूद भी--एक कल्पना-निमित आध्यात्मिक जगत्
में पलायन करने की प्रवृत्ति विद्यमान थी। इसका यह मतलब नहीं
कि “रूपाभा के बाद उन्होंने जिन नये आदर्शों को अ्रपनाया था,,
उनसे स्फूर्ति पाकर उन्होंने श्रेष्ठ साहित्य की रचना नहीं की
जो लोग यह दावा करते हैं कि प्रगतिवादियों ने अपना मोर्चा मज़बूत
करने के लिये पन्तजी को ज़बदंस्ती अपनी तरफ घसीट लिया, वे
पंतजी के साथ और हिन्दी कविता के इतिहास के साथ बहुत बड़ा
छ्मन्याय करते । नये श्रादशो से प्रेरित होकर पन््तजी ने आम्या
की रचना कीं। इसकी भूमिका में उन्होने बड़ी स्पष्टता से. स्वीकार
किया कि जनसाधारण के प्रति उनकी सहानुभूति बौद्धिक ही
है | यह बात सौमाग्य और दुर्भाग्य दोनों की है। सोभाग्य की इस-
लिये है कि सहानुभूति बोद्धिक होते हुए भी उसी के सहारे पन््तजीः
ध्राम्याः जैसाः अनूठा काव्यसंग्रह हिन्दी साहित्य को दे सके। इसका
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